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यूपी में कांग्रेस का आखिरी दुर्ग भेदने के लिए अमेठी वाला दांव चलेगी BJP? रायबरेली को लेकर क्या है रणनीति

कांग्रेस पार्टी 2019 में 80 लोकसभा सीटों वाले यूपी की एक सीट ही जीत सकी थी. वो सीट रायबरेली की थी. 2024 के चुनाव में बीजेपी का फोकस यूपी की इस सीट को जीतने पर है. कांग्रेस के यूपी में अंतिम किले को भेदने के लिए बीजेपी क्या 2019 का अमेठी, 1997 का छिंदवाड़ा मॉडल अपनाएगी? जानें रायबरेली को लेकर BJP की रणनीति क्या है...

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बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और सोनिया गांधी (फाइल फोटो)
बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और सोनिया गांधी (फाइल फोटो)

लोकसभा सीटों के लिहाज से देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर में है. कभी देश और प्रदेश की सत्ता पर काबिज रही पार्टी यूपी में केवल एक लोकसभा सीट पर सिमट चुकी है. 2014 में अमेठी और रायबरेली सीट ही जीत सकी कांग्रेस ने 2019 में अमेठी भी गंवा दिया. अब भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की नजर यूपी में कांग्रेस के अंतिम किले रायबरेली पर है.

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बीजेपी की कोशिश है कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस मुक्त भारत हो या न हो, कांग्रेस मुक्त यूपी जरूर हो जाए. इसके लिए पार्टी ने अभी से तैयारी शुरू कर दी है. रायबरेली को बीजेपी ने रेड जोन की सीटों वाली लिस्ट में रखा है. यूपी के बीजेपी कार्यकर्ता हों या नेता, सभी यही कह रहे हैं कि जब अमेठी का दुर्ग ध्वस्त किया जा सकता है, रामपुर और आजमगढ़ जैसी सीटें सपा से छीनी जा सकती हैं तो रायबरेली क्यों नहीं?

रायबरेली को लेकर क्या है बीजेपी का प्लान

रायबरेली की जंग जीतने के लिए बीजेपी तीन स्तर की रणनीति पर काम कर रही है. पहला- सोनिया गांधी को रायबरेली दौरों के साथ ही कामकाज को लेकर घेरना, दूसरा- ऐसे नेताओं और कार्यकर्ताओं से संपर्क जो किसी कारण से कांग्रेस पार्टी से नाराज हैं और तीसरा- हर वर्ग, हर जाति और हर समुदाय तक पहुंचना, केंद्र और यूपी सरकार की योजनाओं और बीजेपी के शासन में रायबरेली में हुए विकास कार्यों का प्रचार करना.

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रायबरेली से सांसद हैं सोनिया गांधी (फाइल फोटो)
रायबरेली से सांसद हैं सोनिया गांधी (फाइल फोटो)

बीजेपी की ओर से केंद्र और यूपी सरकार की योजनाओं के लाभार्थियों की सूची बनाकर उनसे भी संपर्क करने के लिए कहा गया है. बीजेपी का फोकस रायबरेली लोकसभा क्षेत्र में बूथ स्तर तक मजबूत पैठ बनाने पर है. एक रणनीति उम्मीदवार चयन को लेकर भी है. बीजेपी के नेता हालांकि ये बोलने से बच रहे हैं कि सोनिया गांधी के खिलाफ कोई बड़ा नेता चुनाव लड़ेगा या पार्टी स्थानीय चेहरे पर ही दांव लगाएगी.

क्या बीजेपी अपनाएगी 2019 वाला अमेठी मॉडल

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो बीजेपी रायबरेली सीट को लेकर जिस तरह से गंभीर नजर आ रही है, उसे देखते हुए अगले चुनाव में अमेठी मॉडल, मध्य प्रदेश का छिंदवाड़ा मॉडल अपना ले तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए. साल 2019 में बीजेपी ने साल 2014 की तरह अमेठी लोकसभा सीट से राहुल गांधी के खिलाफ स्मृति ईरानी को उम्मीदवार बनाया था. स्मृति ईरानी 2014 का चुनाव हार गई लेकिन केंद्र में मंत्री बनीं और अमेठी में उनकी आवाजाही बनी रही.

नतीजा ये हुआ कि 2019 के लोकसभा चुनाव में स्मृति ईरानी ने यूपी में कांग्रेस के सबसे मजबूत दुर्ग में से एक माने जाने वाले अमेठी को कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी से छीनकर बीजेपी के खाते में डाल दिया. मध्य प्रदेश में भी ऐसा ही कुछ हुआ था. कांग्रेस पार्टी का वह किला जिसे इमरजेंसी विरोधी लहर में भी कोई भेद नहीं पाया था, साल 1997 के उपचुनाव में बीजेपी ने छीन लिया था. बीजेपी ने 1980 से ही लगातार निर्वाचित होते आ रहे कांग्रेस के कद्दावर नेता कमलनाथ को छिंदवाड़ा सीट पर शिकस्त दे दी थी.

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कमलनाथ (फाइल फोटो)
कमलनाथ (फाइल फोटो)

बीजेपी ने कमलनाथ की पत्नी के इस्तीफे से रिक्त हुई छिंदवाड़ा सीट पर उपचुनाव में मध्य प्रदेश के कद्दावर नेता पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा को उम्मीदवार बनाया. सुंदरलाल पटवा ने कमलनाथ को चुनावी जंग में पटखनी दे दी. कमलनाथ और राहुल गांधी के खिलाफ बीजेपी के ये प्रयोग भले ही सफल रहे हैं लेकिन सोनिया के खिलाफ पार्टी का कोई दांव चल नहीं पाया है. सोनिया गांधी के खिलाफ कर्नाटक के बेल्लारी सीट पर बीजेपी ने फायरब्रांड नेता की इमेज वाली सुषमा स्वराज को उतारा था. लेकिन सुषमा स्वराज हार गई थीं.

बीजेपी को क्यों है रायबरेली में जीत का भरोसा?

रायबरेली में बीजेपी जीत की संभावनाएं ऐसे ही नहीं तलाश रही. इसके पीछे कई फैक्टर हैं. राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी इसे लेकर कहते हैं कि रायबरेली पर बीजेपी के फोकस के कई कारण हैं. 2019 में अमेठी की जीत तो है ही, उपचुनाव में आजमगढ़ और रामपुर जैसे सपाई किलों का ध्वस्त हो जाना भी पार्टी की रायबरेली को लेकर आक्रामक रणनीति की प्रमुख वजह है. रायबरेली में कांग्रेस साल दर साल कमजोर हुई है. पिछले विधानसभा चुनाव और हाल ही में आए निकाय चुनाव के नतीजे भी इस बात की तस्दीक करते हैं.

राहुल गांधी और स्मृति ईरानी (फाइल फोटो)
राहुल गांधी और स्मृति ईरानी (फाइल फोटो)

नगर निकाय चुनाव में कांग्रेस रायबरेली नगर पालिका और लालगंज नगर पंचायत, केवल दो ही जगह चेयरमैन का चुनाव जीत सकी. जिले के नौ नगर निकायों में से पांच जगह बीजेपी और दो जगह निर्दलीय चेयरमैन उम्मीदवारों को जीत मिली. विधानसभा चुनाव की बात करें तो 2022 के विधानसभा चुनाव में रायबरेली जिले में कांग्रेस खाता तक नहीं खोल सकी. जिले की छह में से चार सीटों पर सपा और दो पर बीजेपी के उम्मीदवार विजयी रहे. 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस दो सीटें जीतने में सफल रही थी. तब बीजेपी ने तीन सीटें जीती थीं और सपा एक सीट पर सिमट गई थी.

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2014 की तुलना में कम रहा 2019 की जीत का अंतर

रायबरेली लोकसभा सीट से सोनिया गांधी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद 3 लाख 52 हजार वोट से अधिक बड़े अंतर से जीत दर्ज की थी. सोनिया गांधी को 5 लाख 26 हजार से अधिक वोट मिले थे. वहीं, 2019 के चुनाव में सोनिया गांधी को पिछले चुनाव की तुलना में वोट तो अधिक मिले लेकिन जीत का अंतर आधा हो गया.

2014 के मुकाबले 2019 में आधा था सोनिया गांधी की जीत का अंतर (फाइल फोटोः PTI)
2014 के मुकाबले 2019 में आधा था सोनिया गांधी की जीत का अंतर (फाइल फोटोः PTI)

सोनिया गांधी ने 2019 में अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी दिनेश सिंह को 1 लाख 67 हजार वोट से अधिक के अंतर से हरा दिया था. सोनिया को 5 लाख 34 हजार से अधिक वोट मिले वहीं बीजेपी के दिनेश सिंह भी 3 लाख 67 हजार से अधिक वोट पाने में सफल रहे. तीसरे नंबर पर रहे बसपा उम्मीदवार को भी 63 हजार से अधिक वोट मिले थे. पिछले लोकसभा चुनाव में घटे जीत के अंतर, अमेठी की जीत, हालिया उपचुनाव में रामपुर-आजमगढ़ में मिली सफलता, विधानसभा चुनाव में रायबरेली जिले से कांग्रेस का सफाया और निकाय चुनाव के परिणाम, इन सारे फैक्टर्स के कारण बीजेपी रायबरेली सीट जीतने के लिए पूरा जोर लगाने को तैयार है.

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रायबरेली हार गए तो कुछ नहीं, जीते तो जाएगा बड़ा संदेश

राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी कहते हैं कि गांधी परिवार के गढ़ रायबरेली में अगर हमेशा की तरह बीजेपी हारती है तो भी गोरखपुर में हार की तरह कोई हो-हल्ला नहीं होना है. लेकिन अगर बीजेपी ने रायबरेली की लड़ाई जीत ली तो पूरे देश में एक बड़ा संदेश जाएगा जो अमेठी की हार का जख्म भूलने की कोशिश कर रही कांग्रेस की भविष्य की राजनीति को भी प्रभावित करेगा.

इस बार प्रियंका गांधी को प्रचार में उतारने का है कांग्रेस का प्लान (फाइल फोटो)
इस बार प्रियंका गांधी को प्रचार में उतारने का है कांग्रेस का प्लान (फाइल फोटो)

उन्होंने साथ ही ये भी जोड़ा कि बीजेपी की रणनीति प्रचार अभियान को लेकर कांग्रेस का प्लान डिस्टर्ब करने की भी हो सकती है. रायबरेली सीट फंसी तो हर चुनाव में सोनिया गांधी के चुनाव प्रचार का जिम्मा संभालने वाली प्रियंका गांधी को वहां अधिक समय तक कैंप करना पड़ सकता है. ऐसे में प्रियंका को चुनाव प्रचार में आगे करने की कांग्रेसी रणनीति प्रभावित होगी.   

क्यों खास है रायबरेली सीट? जातीय-सामाजिक समीकरण

रायबरेली लोकसभा सीट गांधी परिवार का गढ़ है. रायबरेली सीट से गांधी परिवार की सोनिया गांधी के पहले फिरोज गांधी और इंदिरा गांधी भी सांसद रह चुके हैं. रायबरेली सीट के चुनावी अतीत की बात करें तो 1957 के बाद से कांग्रेस को केवल तीन चुनाव में इस सीट पर शिकस्त मिली है, जिसमें 1977 का चर्चित चुनाव भी शामिल है, जब राजनारायण ने इंदिरा गांधी को हरा दिया था.

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रायबरेली लोकसभा सीट के चुनाव में जातीय और सामाजिक समीकरणों पर कांग्रेस का, गांधी परिवार का नाम भारी पड़ता रहा है. शायद यही वजह है कि गठबंधन न रहने की स्थिति में भी समाजवादी पार्टी जैसे दल यहां उम्मीदवार नहीं उतारते. यहां पासी के साथ ही ब्राह्मण और मुस्लिम मतदाता भी चुनाव परिणाम निर्धारित करने में अहम भूमिका निभाते हैं.

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