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माफिया मुख्तार अंसारी की मौत के बाद उसके करीबी और रिश्ते में ससुर लगने वाले अताउर रहमान का नाम एक बार फिर से सुर्खियों में है. अताउर रहमान उर्फ सिकंदर पिछले 26 सालों से फरार है. कई नामचीन लोगों की हत्या और अपहरण के मामलों में उसका नाम आया है. एक समय उसे मुख्तार गैंग का मास्टरमाइंड कहा जाता था. सीबीआई और पुलिस को उसकी तलाश है. उसके बारे में उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी बृजलाल सिंह ने 'आज तक' से बातचीत में कई खुलासे किए हैं.
पूर्व डीजीपी ने बताया कि मुख्तार अंसारी का जो सबसे करीबी आदमी था वो अताउर रहमान उर्फ सिकंदर ही है. अताउर रिश्ते में मुख्तार का ससुर लगता था. वह मुख्तार गैंग के मास्टरमाइंड के तौर पर जाना जाता था. पिछले 26 साल से वो फरार चल रहा है. उसकी तलाश सीबीआई और पुलिस को है.
सूट-बूट और हाथ में अटैची
जिस समय अताउर रहमान के नाम का खौफ हुआ करता था, उस समय को लेकर बृजलाल सिंह कहते हैं कि मुन्ना बजरंगी के बाद अगर कोई मुख्तार के सबसे करीब था तो वो रहमान ही था. रहमान सूट-बूट पहनता था और हाथ में नंबर वाली अटैची लिए रहता था. इस अटैची में वह विदेशी पिस्टल रखता था.
बकौल पूर्व डीजीपी बृजलाल- उस वक्त अगर कोई नामी गिरामी नेता या बिजनेसमैन एक ही गोली से मारा जाता था तो सब जान लेते थे कि वारदात को अताउर रहमान उर्फ सिकंदर ने ही अंजाम दिया है. सिकंदर नेता अजीत सिंह की हत्या में भी शामिल था. टेलीस्कोपिक राइफल में साइलेंसर लगाकर अजीत सिंह की हत्या की गई थी.
बृजलाल ने आगे बताया कि अजीत सिंह हत्याकांड में अखिलेश सिंह और रमेश कालिया का भी नाम आया था. जांच सीआईडी को सौंपी गई थी लेकिन तत्कालीन सपा सरकार ने सब मैनेज कर लिया और कहा गया कि जो साथ में गनर था उसकी कार्बाइन से गोली चल गई और अजीत को लग गई. जबकि, अंडर वर्ल्ड में चर्चा थी कि अताउर रहमान ने ही अजीत सिंह को मारा है. क्योंकि, अजीत सिंह की मौत में भी एक ही गोली चली थी. और उस समय एक गोली से सामने वाले को मारने का हुनर रहमान में ही था.
एक गन शॉट और सामने वाले का काम तमाम
इसी तरह 1991 में रणजीत सिंह की हत्या हुई, इस कांड में भी एक गोली चली थी. बताया गया कि रणजीत सिंह घर के पास पीपल के पेड़ में जल दे रहे थे. बगल में एक नाला था और वहां मुख्तार के गुर्गे रामू मल्लाह का घर था. इस घर की दीवार पर मुख्तार ने एक छेद किया और रहमान ने उससे निशाना लगाया. जब रणजीत सिंह पीपल में जल दे रहे थे तभी अताउर रहमान ने एक फायर किया और वह वहीं ढेर हो गए.
इसी तरह माफिया बृजेश सिंह के गुरु साहब सिंह को भी रहमान ने एक ही गोली से मार दिया था. इस वारदात को उसने अपनी विदेशी राइफल से बनारस कचहरी में अंजाम दिया था. इसके अलावा हवलदार राजेंद्र सिंह को भी रहमान ने एक गन शॉट में मारा था. क्योंकि, मुख़्तार के गुरु साधू मकनू सिंह की हवलदार से दुश्मनी थी जो कि रिश्ते में मकनू सिंह का चचेरा भाई भी लगता था.
हवलदार राजेंद्र सिंह बनारस पुलिस लाइन में तैनात था. जब वह अपनी पत्नी के साथ पुलिस लाइन से निकला तो एक सफेद एंबेसडर कार उसके पीछे लग गई और इसी दौरान अताउर रहमान की मैग्नम 375 राइफल भी गरज गई. रहमान की गोली से हवलदार की मौके पर मौत हो गई.
लूट, अपहरण, हत्या में मुख्तार का मुख्य किरदार
यूपी के पूर्व डीजीपी ने बताया कि जनवरी 1997 में जब मुख्तार विधायक बना तो अताउर रहमान के जरिए दिल्ली के बड़े कारोबारी रूंगटा से करोड़ो की फिरौती मांगी गई और फिर प्रयागराज के झूंसी में उन्हें मारकर फेंक दिया गया. 1991 में जब कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने तब मुख्तार गैंग पर दबाव पड़ा और मुख्तार अपने शूटर मुन्ना बजरंगी व अताउर रहमान के साथ दिल्ली, हरियाणा और चंडीगढ़ में भाग कर गया और वहीं रहा.
इसी दौरान वह पश्चिम यूपी के बड़े क्रिमिनिल संजीव जीवा, रविंद्र भूरा, राजवीर रमाला, प्रभु जोत डिंपी जो कि आतंकवादी था और फर्राटे से अंग्रेजी बोलता था मुख्तार गैंग से जुड़ गए. मुख्तार को जो भी घातक हथियार मिलते थे वह प्रभु जोत डिंपी से ही मिलते थे.
मुख्तार को एलएमजी भी दिलवाई थी
बृजलाल सिंह के मुताबिक, अताउर रहमान मुख्तार की तरह खेल का निशानेबाज नहीं था बल्कि वह प्रोफेशनल शूटर था. हत्या करते-करते वो ट्रेंड हो गया था. इसीलिए किसी भी शख्सियत को वह एक गन शॉट में ही ढेर कर देता था. मुख्तार को लाइट मशीन गन भी इसी ने ही दिलवाई थी, जिसे डिप्टी एसपी शैलेंद्र सिंह ने 26 जनवरी को बरामद किया था.
मगर उस समय के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने मुख्तार पर पोटा नहीं लगने दिया और उसे बचा लिया गया. इतना ही नहीं 2005 में जब बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या हुई थी तो इसकी साजिश में भी अताउर रहमान की मुख्य भूमिका रही थी.
पूर्व डीजीपी बृजलाल ने 'आज तक' को बताया कि जब वह पुलिस सेवा में थे तो उन्होंने अताउर रहमान पकड़ने की कोशिश की थी लेकिन वह नेपाल और बांग्लादेश भाग जाता था. बकौल बृजलाल- दिल्ली के बड़े कोयला कारोबारी विजय गोयल एक बड़ी पार्टी में आए और जब निकले तो उनका अपहरण कर लिया गया. उनसे 10 करोड़ रुपये की फिरौती मांगी गई और फिरौती की रकम एक मंदिर के पास लेकर आने को कहा गया था. ये रकम लेने खुद मुख्तार गया था, जहां से वह गिरफ्तार हो गया था.
दिल्ली के कारोबारी का अपहरण, 10 करोड़ फिरौती
जबकि, कारोबारी गोयल की बरामदगी पंचकूला से हुई थी. उन्हें इंजेक्शन लगाकर बेहोश रखा गया था. अगर मुख्तार उस समय नहीं पकड़ा गया होता तो वह पैसा लेकर फरार तो हो ही जाता बदले में कारोबारी भी जिंदा नहीं रहता. इसी मामले में मुख्तार को 10 साल की सजा हुई थी जिसमें टाडा का मुकदमा दर्ज किया गया था.
बृजलाल ने यह भी कहा कि सपा सरकार के समय जेल में मुख्तार का दरबार लगता था. जेल से वह हत्याएं, लूट अपहरण की योजना बनाता था और सारा काला कारोबार चलाता था. खनन से लेकर रेलवे, राशन सबका ठेका मुख्तार अपने लोगों को दिलाता था. डीजल फीलिंग से लेकर आंध्र प्रदेश से जो मछली बिकने आती थी उसमें भी मुख्तार का शेयर होता था. गाय, भैंस बांग्लादेश जब स्लॉटर के लिए जाते थे तो उसमें भी मुख्तार का हाथ होता था क्योंकि उसमें उसको बड़ा मुनाफा मिलता था.
मुख्तार का चलता था सिक्का
मुख्तार की इतनी बड़ी प्लानिंग होती थी कि जब वह अपना काम करता था और सप्लाई करता था तो उत्तर प्रदेश से बिहार के रास्ते पर दरोगा से लेकर सिपाही तक उसी के आदमी होते थे. क्योंकि, ज्यादातर लोगों की भर्तियां यही कराता था. उसमें से एक फैयाज नाम का सिपाही भी था जो हाल ही में सोशल मीडिया पर स्टेटस लगाकर मुख्तार के मरने का गम मना रहा था.
पुलिस से बचने की ये होती थी प्लानिंग
पूर्व पुलिस अधिकारी की माने तो मुख्तार ने अपने घर में जितने भी लोगों को लाइसेंस दिलवाया उसमें उसने सबको मैग्नम असलहा दिलवाया था. साथ ही जब पुलिस पीछा करती ये लोग अपने साथ गाड़ियों में डिप्टी एसपी की वर्दी रखते थे. साथ ही ट्राइपॉड और टेलीस्कोप भी होते थे और मौका देखते ही ट्राइपॉड और टेलीस्कोप निकालकर पीडब्ल्यूडी विभाग की तरह जिस तरीके से सड़क का मुआयना किया जाता है, उसका सर्वे करने लगते थे.
मुख्तार के गैंग में जो एक डिंपी था (पंजाब का) वह अंग्रेजी फर्राटे से बोलता था. ऐसे में पुलिस सोचती थी कि यह पढ़ा लिखा इंजीनियर है तो शक नहीं करती थी और यह लोग बच जाते थे. बृजलाल ने बताया कि फरार अताउर रहमान बांग्लादेश या पाकिस्तान में कहीं भी हो सकता है, क्योंकि मुख्तार के ही गांव का सहाबू जिसके ऊपर भी 7 लाख का नाम है वह पाकिस्तान में जाकर बस गया है. उसने वहीं शादी कर ली है.
अताउर रहमान मुख्तार अंसारी का रिश्तेदार बताया जाता है और दोनों गाजीपुर के मुहम्मदाबाद के रहने वाले थे. फिलहाल, पुलिस और सीबीआई दोनों अताउर की तलाश कर रही हैं.