बिहार में आरजेडी नेता व शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ने रामचरितमानस को लेकर बयान दिया था तो बीजेपी पहले आक्रमक हुई, फिर शांत पड़ गई. अब समाजवादी पार्टी के सबसे बड़े पिछड़े चेहरे स्वामी प्रसाद मौर्य ने भी बयान दिया है. स्वामी प्रसाद ने रामचरितमानस को बकबास बताते हुए दलित विरोधी बताया है. सपा ने इस बयान से पिंड छुड़ाने के बजाय फिलहाल खामोशी अख्तियार कर रखी है. वह पिछड़ी और दलित समाज की प्रतिक्रिया को देखना भी चाहती है.
स्वामी प्रसाद मौर्य ने आजतक से कहा, ''धर्म कोई भी हो, हम उसका सम्मान करते हैं. लेकिन धर्म के नाम पर जाति विशेष, वर्ग विशेष को अपमानित करने का काम किया गया है, हम उस पर आपत्ति दर्ज कराते हैं. रामचरितमानस में एक चौपाई लिखी है, जिसमें तुलसीदास शूद्रों को अधम जाति का होने का सर्टिफिकेट दे रहे हैं. उन्होंने कहा, ब्राह्मण भले ही दुराचारी, अनपढ़ और गंवार हो, लेकिन वह ब्राह्मण है तो उसे पूजनीय बताया गया है, लेकिन शूद्र कितना भी ज्ञानी, विद्वान हो, उसका सम्मान मत करिए.'' उन्होंने सवाल उठाया कि क्या यही धर्म है? अगर यही धर्म है तो ऐसे धर्म को मैं नमस्कार करता हूं. ऐसे धर्म का सत्यानाश हो, जो हमारा सत्यानाश चाहता हो.
स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान को कैसे देखती है सपा?
समाजवादी पार्टी इसे स्वामी प्रसाद मौर्य का निजी बयान बताकर पल्ला झाड़ रही है, लेकिन पार्टी को लग रहा है की इस बयान के दो पहलू हैं एक इसका धार्मिक पहलू है और दूसरा सामाजिक. सपा के भीतर दोनों पहलुओं पर विचार हो रहा है. पार्टी का मानना है कि ऐसे बयान से पार्टी को नुकसान हो सकता है. वहीं, सपा का अंबेडकरवादी जो धड़ा है उसका मानना है कि इस बहाने अगर दलितों, महिलाओं और पिछड़ों के बारे में इस धर्म ग्रंथ में कुछ लिखा गया है तो उस पर बहस होने देना चाहिए. इसमें कोई बुराई नहीं.
हालांकि समाजवादी पार्टी के विधायक और विधानसभा में पार्टी के मुख्य सचेतक मनोज पांडे ने रामचरितमानस को महान धर्म ग्रंथ बताते हुए इसकी सामाजिक उपयोगिता को बताया है. मनोज पांडे इसलिए इस मुद्दे पर बोलने के लिए सामने आए हैं, क्योंकि उनकी और स्वामी प्रसाद मौर्य की सियासी अदावत ऊंचाहार सीट पर किसी से छुपी नहीं है. मनोज पांडे ब्राह्मण समुदाय से आते हैं और पार्टी के ब्राह्मण चेहरे हैं जबकि स्वामी प्रसाद मौर्य ओबीसी चेहरा है और पार्टी में अंबेडकवादी नेता के तौर पर सबसे मुखर माने जाते हैं.
सपा यूपी में बीजेपी के वोटबैंक बन चुके ओबीसी और दलितों को अपने खेमे में वापस लाने की कोशिश कर रही है. 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही सपा प्रमुख अखिलेश यादव अंबेडकरवादियों को भी गले लगा रहे हैं. बसपा के दलित मूवमेंट से जुड़े रहे नेताओं को सपा में लिया है. अंबेडकरवादियों के जरिए अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश की सियासत में दलित और ओबीसी को अपने पक्ष में एकजुट कर बीजेपी से मुकाबला करना चाहते हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान को इसी कड़ी में देखा जा रहा है, क्योंकि दलितों के बड़े पक्षधर हैं.
सपा की ओर से बयान की नहीं हो रही निंदा
सपा के भीतर से कोई भी स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान का किसी तरह से खंडन करने या रामचरितमानस पर दिए गए बयान की निंदा करने सामने नहीं आया है. सपा के ज्यादातर पार्टी प्रवक्ताओं ने इस पर चुप्पी साध ली है और सभी को इंतजार है कि अखिलेश यादव इस मुद्दे पर क्या लाइन लेते हैं. सभी का कहना है कि हो सकता है खुद राष्ट्रीय अध्यक्ष इस मुद्दे पर अपनी बात कहें, लेकिन पार्टी के भीतर ये चर्चा जरूर है कि अगर रामचरितमानस में यह चौपाई लिखी है तो फिर क्यों न बीजेपी से पूछा जाए कि क्या वह इन चुनिंदा चौपाइयों से सहमत है!
अखिलेश के स्टैंड का सबको इंतजार
दरअसल, समाजवादी चाहती है की रामचरितमानस की चौपाइयों के आधार पर ही बीजेपी को घेरा जाए कि क्या वह पिछड़ों दलितों और महिलाओं पर लिखे गए इस चौपाई को सही मानते हैं? क्या वो इससे सहमत हैं? इस तरह बीजेपी के ही नेरेटिव से बीजेपी को घेरने की रणनीति भी है, इसीलिए सपा के नेता चुप हैं और मौके की नजाकत को देख रहे हैं. समाजवादी पार्टी के सभी प्रवक्ता इस मुद्दे पर अपनी तरफ से एक लाइन भी बोलने को तैयार नहीं हैं. ऐसे में सबको इंतजार है अखिलेश यादव की तरफ से इस मुद्दे पर आने वाले संकेत का. देखना है कि अखिलेश क्या राजनीतिक स्टैंड लेते हैं?