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जिस डर से हरियाणा में कांग्रेस ने AAP को नहीं दी सीटें, वही डर यूपी में अखिलेश को सता रहा? उपचुनाव की 5 सीटों पर क्यों है तकरार

यूपी की 10 सीटों के लिए उपचुनाव से पहले सपा-कांग्रेस गठबंधन को लेकर सस्पेंस बना हुआ है. क्या यूपी में अखिलेश को वही डर सता रहा है जिस डर से कांग्रेस ने हरियाणा में AAP को सीटें नहीं दीं?

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अखिलेश यादव और राहुल गांधी
अखिलेश यादव और राहुल गांधी

लोकसभा चुनाव नतीजों से उत्साहित सपा और कांग्रेस, दोनों ही दलों के नेता गठबंधन की गांठ को अटूट बता रहे थे, 2027 के विधानसभा चुनाव तक साथ चलने के दावे कर रहे थे. चुनाव नतीजे आए अभी छह महीने भी चार ही महीने हुए हैं कि इस गठजोड़ में गांठ पड़ती दिख रही है. नौ विधायकों के सांसद चुने जाने, एक विधायक को अयोग्य ठहराए जाने से रिक्त हुई यूपी की 10 विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव होने हैं और दोनों ही दल हर सीट पर उम्मीदवार उतारने की तैयारी में हैं. सपा प्रमुख अखिलेश यादव एक-एक विधानसभा क्षेत्र के नेताओं के साथ बैठकें कर रणनीति पर मंथन कर रहे हैं. वहीं, कांग्रेस ने भी हर सीट पर प्रभारियों और पर्यवेक्षकों की टीम उतार दी है. सवाल उठ रहे हैं कि क्या दोनों दल फिर से एकला चलो की राह पर बढ़ चले हैं?

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पांच सीटों की तकरार

यूपी की 10 सीटों पर उपचुनाव हैं और कांग्रेस ने पांच सीटों पर दावेदारी कर दी थी. 2022 के विधानसभा चुनाव में इन 10 में से पांच सीटों पर सपा के उम्मीदवार जीते थे. कांग्रेस के नेता चाहते थे कि सपा जिन सीटों से जीती थी, उनको अपने पास रख ले लेकिन बाकी सीटें जहां उसे हार मिली थी, वो उनके लिए छोड़ दे. सपा दो से अधिक सीटें देने को तैयार नहीं थी. कांग्रेस की डिमांड घटकर चार सीट पर आ गई और अब पार्टी तीन सीटों- मीरापुर, फूलपुर और मझवां को अपने लिए मुफीद बता रही है. कांग्रेस की दावेदारी पांच सीटों से शुरू होकर चार और अब तीन सीटों तक आती दिख रही है लेकिन सपा है कि सांस ही नहीं ले रही. सपा सभी सीटों पर अकेले ही चुनाव मैदान में उतरने के संकेत दे रही है.

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गठबंधन को लेकर सपा उदासीन क्यों

कांग्रेस से गठबंधन को लेकर सपा के रवैये में कोई गर्मजोशी नजर नहीं आ रही है तो उसके पीछे कारण क्या हैं? बात इसे लेकर भी हो रही है. दरअसल, अखिलेश यादव कांग्रेस के साथ गठबंधन आगे बढ़ाने, लंबे समय तक साथ चलने को तैयार थे लेकिन इसके लिए उनका अपना फॉर्मूला भी था. कांग्रेस से गठबंधन को लेकर सपा की उदासीनता को चार पॉइंट में समझा जा सकता है.

अखिलेश का नेशनल ड्रीमः अखिलेश यादव चाहते थे कि मध्य प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, महाराष्ट्र जैसे राज्य जहां सपा का जनाधार रहा है, वहां कांग्रेस उनको भी कुछ सीटें दे. लोकसभा चुनाव से पहले हुए मध्य प्रदेश के बाद हरियाणा चुनाव में भी कांग्रेस ने उन्हें कोई सीट नहीं दी. जम्मू कश्मीर में भी कांग्रेस ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ गठबंधन किया लेकिन सपा को दरकिनार कर दिया. अखिलेश यादव के नेशनल ड्रीम को कांग्रेस ने एक के बाद एक झटके दिए हैं. सपा में कांग्रेस के इस रवैये को लेकर भी नाराजगी बताई जा रही है.

सियासी जमीन की चिंताः एक वजह सपा नेताओं और कार्यकर्ताओं की चिंता है. यह चिंता कुछ वैसी ही है जैसी हरियाणा चुनाव में गठबंधन की बातचीत चली तो कांग्रेस के स्थानीय नेताओं को सता रही थी. जिस डर से कांग्रेस ने हरियाणा में आम आदमी पार्टी और सपा जैसी पार्टियों के लिए सीटें नहीं छोड़ीं, वही डर क्या अखिलेश यादव को भी सता रहा है? दरअसल, हरियाणा कांग्रेस नेता गठबंधन के विरोध में उतर आए थे तो उनका तर्क यही था कि आम आदमी पार्टी को उंगली पकड़ सूबे में एंट्री दिला दी तो आगे चलकर कहीं वो उनकी ही सियासी जमीन पर कब्जा न कर ले, उनके लिए ही सिरदर्द न बन जाए.

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2027 का यूपी चुनावः बात केवल लोकसभा चुनाव नतीजों में कांग्रेस के उभार और अपनी सियासी जमीन को लेकर सपा के डर से आगे 2027 चुनाव की भी है. सपा नेताओं को शायद ये लग रहा है कि अगर उन्होंने कोई रुचि नहीं दिखाई तो कांग्रेस दो सीटों के ऑफर पर भी तैयार हो सकती है, जैसा लोकसभा चुनाव में हुआ था जब 30 सीट से शुरू हुई कांग्रेस की डिमांड 21 पर आकर अटक गई थी. बाद में पार्टी सपा के 17 सीटों के ऑफर पर ही तैयार हुई. सपा अगर गर्मजोशी दिखाती है या कांग्रेस की डिमांड मान लेती है तो उसके लिए गठबंधन की स्थिति में 2027 के यूपी चुनाव में कांग्रेस को कम सीटों पर राजी कर पाना मुश्किल हो जाएगा.

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हालिया उपचुनाव नतीजेः लोकसभा चुनाव के साथ-साथ यूपी की चार विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव हुए थे- ददरौल, दुद्धी, लखनऊ पूर्व और गैंसड़ी. इन चार में से तीन सीटों पर 2022 में कमल खिला था जबकि सपा एक सीट जीत सकी थी. उपचुनाव में सपा को एक सीट का लाभ हुआ था. इससे पहले मऊ जिले की घोसी सीट के उपचुनाव में भी सपा जीतने में सफल रही थी. पांच विधानसभा सीटों के उपचुनाव में तीन सीटें जीत सपा उत्साह से लबरेज है और पार्टी को लग रहा है कि कांग्रेस को अधिक सीटें देने से सीटें बढ़ाने-बचाने की संभावनाओं पर विपरीत असर पड़ सकता है.

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इन सीटों पर होने हैं उपचुनाव

यूपी की जिन 10 सीटों पर उपचुनाव होने हैं, उनमें से नौ सीटें विधायकों के सांसद निर्वाचित होने के बाद इस्तीफे से रिक्त हुई हैं जबकि एक सीट कानपुर की सीसामऊ सपा विधायक इरफान सोलंकी को अयोग्य ठहराए जाने से रिक्त हुई है. 10 में से पांच सीटें सपा के पास थी जिसमें खुद अखिलेश के इस्तीफे से रिक्त हुई मैनपुरी जिले की करहल सीट भी शामिल है. अयोध्या की मिल्कीपुर, गाजियाबाद, अलीगढ़ की खैर, प्रयागराज की फूलपुर, मिर्जापुर जिले की मझवां, अंबेडकरनगर की कटेहरी और मुरादाबाद की कुंदरकी विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव होने हैं.

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