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MLC चुनाव: विपक्ष की यूनिटी टेस्ट में फेल रहे अखिलेश, भारी पड़े योगी आदित्यनाथ

उत्तर प्रदेश के विधान परिषद के चुनाव में बीजेपी ने दोनों सीटें जीत ली है जबकि सपा को करारी शिकस्त मिली. सपा के पास विपक्षी एकता बनाने का मौका था, लेकिन उसमें फेल रही. वहीं, बीजेपी ने अपने सहयोगी दलों के साथ ओम प्रकाश राजभर और रघुराज प्रताप सिंह का समर्थन हासिल कर बड़ा संदेश दिया है.

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उत्तर प्रदेश विधान परिषद सदस्य के लिए दो सीटों पर हुए उपचुनाव बीजेपी ने जीत ली है. बीजेपी प्रत्याशी मानवेंद्र सिंह और पद्मसेन चौधरी एमएलसी के लिए चुन लिए गए हैं. एमएलसी उपचुनाव में सिर्फ करारी मात ही नहीं खानी पड़ी बल्कि विपक्षी दलों का भी सपा सहयोग नहीं जुटा सकी. वहीं, बीजेपी ने सुभासपा ओम प्रकाश राजभर और रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया का समर्थन जुटाने में सफल रही. इस तरह विपक्षी बिखरा हुआ नजर आया तो बीजेपी ने छोटे दलों को अपने साथ खड़ा कर 2024 के लिए सियासी संदेश दे दिया है. 

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लक्ष्मण आचार्य के इस्तीफे और बनवारी लाल दोहरे के निधन के चलते रिक्त हुए दो एमएलसी सीटों के लिए उपचुनाव कराए गए थे. बीजेपी ने उपचुनाव में मानवेंद्र सिंह और पद्मसेन चौधरी को उतारा था. वहीं, सपा ने अतिपिछड़ा और दलित कार्ड खेलते हुए राम जतन राजभर और  रामकरन निर्मल पर दांव लगाया था. लक्ष्मण आचार्य के सीट का कार्यकाल 2027 और बनवारी दोहरे के सीट का कार्यकाल 2028 तक था. 

MLC चुनाव में किसे कितने वोट मिले

यूपी विधान परिषद के दो सीटों पर हुए उपचुनाव के लिए कुल 403 विधायकों में से 396 विधायकों ने ही मतदान किया. इस तरह 7 विधायक मतदान नहीं कर सके. निर्वाचन अधिकारी मोहम्मद मुशहिद ने बताया कि बीजेपी के मानवेंद्र सिंह को 280 मत मिले जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी सपा के राम जतन राजभर को 115 मत मिले. बीजेपी के दूसरे उम्मीदवार पद्मसेन चौधरी को 279 मत मिले जबकि समाजवादी पार्टी के रामकरण निर्मल को 116 मत मिले. बीजेपी के एक उम्मीदवार को उसकी संख्या से छह वोट ज्यादा मिले जबकि दूसरे को पांच वोट ज्यादा मिले हैं. 

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सात विधायक वोट नहीं डाल सके  

एमएलसी चुनाव में बीजेपी के सभी विधायकों ने मतदान में हिस्सा लिया था, लेकिन जिन सात विधायकों ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिए, वो सभी विपक्षी दलों के है. कांग्रेस विधायक आरधना मिश्रा और वीरेंद्र चौधरी ने वोट नहीं डाला. बसपा विधायक उमाशंकर सिंह मतदान के लिए पहुंच ही नहीं सके. सुभासपा विधायक अब्बास अंसारी और सपा विधायक रमाकांत यादव व इरफान सोलंकी जेल में रहने और कानूनी अड़चनों के चलते वोट नहीं डाल सके. सपा विधायक मनोज पारस भी मतदान के लिए नहीं पहुंच सके. 

सपा विपक्ष का सहयोग जुटाने में फेल 

सपा के पास भले ही अपने प्रत्याशियों को जिताने के लिए नंबर गेम नहीं था, लेकिन विपक्षी दलों का साथ जुटाकर सियासी संदेश देने का मौका जरूर था. सपा ने एमएलसी चुनाव में सिर्फ आरएलडी का ही सहयोग जुटा सकी है. इसके अलावा न तो कांग्रेस का समर्थन हासिल कर सकी और न ही छोटे दलों का साथ ले सकी. कांग्रेस विधायकों ने एमएलसी चुनाव वोटिंग में हिस्सा ही नहीं लिया जबकि बसपा विधायक उमाशंकर सिंह वोटिंग के लिए पहुंचे ही नहीं. ओमप्रकाश राजभर और राजा भैया दोनों ही नेता किसी न किसी रूप में सपा के साथ जुड़े रहे हैं. इसके बावजूद सपा एमएलसी चुनाव में दोनों ही नेताओं का साथ नहीं ले सकी. 

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कांग्रेस से सपा ने सहयोग नहीं मांगा

उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बृजलाल खबरी ने कहा कि हमारी पार्टी ने एमएलसी उपचुनाव में किसी भी उम्मीदवार को वोट नहीं देने का निर्णय लिया गया था. कांग्रेस के दो विधायक- आराधना मिश्रा और वीरेंद्र चौधरी ने मतदान नहीं किया. वीरेंद्र चौधरी ने कहा जो लोग उपचुनाव लड़ रहे थे या जिस पार्टी ने उम्मीदवार खड़े किए थे, उन्हें कम से कम हमसे या फिर पार्टी से बात करनी चाहिए थी. जब आप हमें पूछ ही नहीं रहे हैं तो हमें क्या करते. ऐसा लग रहा है कि सपा को हमारे वोटों की जरूरत ही नहीं थी. इसीलिए उन्होंने न तो कांग्रेस विधायकों से बात की और न ही पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से.मतदान में हिस्सा नहीं लेने का फैसला किया था. 


बीजेपी को मिला राजभर-राजा का साथ 

एमएलसी चुनाव में विपक्षी एकता को बड़ा झटका लगा है तो बीजेपी छोटे दलों के अपने साथ जुटाने में सफल रही. बीजेपी अपने सहयोगी-अपना दल (एस) और  निषाद पार्टी के साथ-साथ ओमप्रकाश राजभर की सुभासपा और रघुराज प्रताप सिंह की पार्टी का सहयोग हासिल करने में सफल रही. इसी का नतीजा है कि बीजेपी कैंडिडेटों को एनडीए विधायकों की संख्या से ज्यादा वोट मिले हैं. 

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सुभासपा प्रमुख ओम प्रकाश राजभरऔर उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक एमएलसी चुनाव के दौरान जिस तरह से साथ दिखे और विक्ट्री का निशान दिखाते नजर आए, उसे लेकर भविष्य की सियासत से जोड़कर देखा जा रहा है. रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने मतदान के बाद जिस तरह से उन्होंने बीजेपी के पक्ष में बयान दिया और सपा को प्रत्याशी न उतारने की सलाह देते नजर आए, उसके भी सियासी मायने है. राजभर ने 2022 का चुनाव भले ही सपा के साथ मिलकर लड़े, लेकिन उसके बाद से बीजेपी के साथ उनकी नजदीकियां बढ़ती जा रही है. इसी तरह रघुराज प्रताप सिंह 2017 के बाद से बीजेपी के साथ खड़े नजर आ रहे हैं. 

2024 के लिए बीजेपी का संदेश 

ओम प्रकाश राजभर और रघुराज प्रताप सिंह दोनों ही किसी न किसी रूप में सपा के साथ जुड़े रहे हैं. राज्यसभा और अब एमएलसी चुनाव में दोनों ही नेताओं ने जिस तरह से सपा के खिलाफ और बीजेपी के साथ दिया है, उसके चलते 2024 के लोकसभा चुनाव में दोनों दल के साथ आने की संभावना बढ़ गई है. ओम प्रकाश राजभर के चलते आजमगढ़, मऊ और गाजीपुर में बीजेपी के नुकसान उठाना पड़ा था तो राजा भैया के चलते प्रतापगढ़ में झटका लगा था. ऐसे में बीजेपी इन दोनों ही दलों को साथ लेकर या फिर किसी न किसी रूप में उनके साथ संतुलन बनाकर चल सकती है? 

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