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UP: चार पाटों में घिरी आरक्षण की जंग, जानिए पिछड़ा बनाम अतिपछड़ा समीकरण से किसका बनेगा-किसका बिगड़ेगा गेम

यूपी निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण की लड़ाई अब धीरे-धीरे पिछड़ा बनाम अतिपिछड़े की बीच शिफ्ट होती जा रही है. ओबीसी के मुद्दे पर अखिलेश यादव ने जहां बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है तो मायावती और ओम प्रकाश राजभर ने नया सियासी रंग दे दिया है. उन्होंने अतिपिछड़ा वर्ग के आरक्षण का मुद्दा उठा दिया है.

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योगी आदित्यनाथ, अखिलेश यादव, मायावती, ओपी राजभर
योगी आदित्यनाथ, अखिलेश यादव, मायावती, ओपी राजभर

उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर छिड़ी सियासी जंग में अब नया राजनीतिक मोड़ आ गया है. आरक्षण के मुद्दे पर समाजवादी पार्टी ने बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया तो बसपा सुप्रीमो मायावती से लेकर सुभासपा के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर अतिपिछड़ा दांव खेल रहे हैं. इस तरह से ओबीसी आरक्षण से शुरू हुई लड़ाई पिछड़ा बनाम अतिपिछड़ा के बीच सिमटती जा रही है, जो कहीं न कहीं बीजेपी के सियासी मन के मुताबिक नजर आ रही है.

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सूबे में ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर सपा ने आक्रामक रुख अपनाकर बीजेपी को चिंता में डाल रखा है. सपा प्रमुख अखिलेश यादव से लेकर शिवपाल यादव सहित पूरी समाजवादी पार्टी ने सोशल मीडिया से लेकर सड़क तक मोर्चा खोल रखा है. ऐसे में मायावती ने बीजेपी-कांग्रेस ही नहीं, बल्कि सपा को भी आरक्षण पर कठघरे में खड़ा कर दिया. मायावती और ओम प्रकाश राजभर ने अतिपिछड़े के आरक्षण का मुद्दा उठाया और दलित-अतिपिछड़े वर्गों को बीजेपी-कांग्रेस-सपा जैसे दलों से सतर्क रहने के लिए कहा है.

मायावती ने बीजेपी-कांग्रेस पर साधा निशाना
मायावती ने अपने नेताओं की बैठक कर सपा, कांग्रेस और भाजपा पर अतिपिछड़ों, पिछड़ों और अनुसूचित जाति/जनजाति को आरक्षण के हक से वंचित करने का आरोप लगाया है. मायावती ने कहा कि कांग्रेस ने केंद्र की सरकार में रहते हुए पिछड़े वर्ग को आरक्षण देने से संबंधित मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लागू नहीं किया और साथ ही अनुसूचित जाति/जनजाति के आरक्षण को भी निष्प्रभावी बना दिया था. अब बीजेपी भी उसी राह पर चल रही है जबकि सपा सरकार ने भी अति पिछड़ों को पूरा हक नहीं दिया. एससी-एसटी के पदोन्नति के आरक्षण को खत्म करने और संसद में इससे संबंधित बिल को पास न होने का आरोप सपा पर लगाया. 

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सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने अखिलेश यादव पर अति पिछड़ी जातियों को आरक्षण का लाभ देने से वंचित करने का आरोप मढ़ा है. उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव पिछड़ा वर्ग में बारी, शाक्य, सैनी, भर, राजभर, कहार, गोंड, बिंद जैसी वंचित जातियों को उनका हक देने से हमेशा बचते रहे. अब जब सियासी जमीन खिसक रही है तो पिछड़ों और दलितों के हितैषी बनने का ढोंग कर रहे हैं. राजभर ने बीजेपी सरकार से सामाजिक न्याय समिति की सिफारिशों को लागू करने की मांग फिर से उठाई. साथ ही कहा कि 27 प्रतिशत आरक्षण का लाभ 12 पिछड़ी जातियां ले रही हैं, अन्य पिछड़ी जातियों को भी उनका हक दिया जाए, सरकार इस दिशा में कार्य करे.

अखिलेश भी हुए एक्टिव
मायावती और राजभर ओबीसी आरक्षण को लेकर नया राजनीतिक एजेंडा सेट कर रही है ताकि ओबीसी के मुद्दे पर सपा ने जो बढ़त बना ली थी, उसे बैकफुट पर की जा सके. हाई कोर्ट का फैसला आते ही बीजेपी के खिलाफ सपा ने मोर्चा खोल दिया था और योगी सरकार को ओबीसी विरोधी कठघरे में खड़ा कर रही थी. ओबीसी मुद्दे पर अखिलेश और उनकी पार्टी फ्रंटफुट पर खड़ी हुई नजर आ रही थी. ऐसे में मायावती और राजभर इस मुद्दे पर काफी पिछड़ गए थे और बीजेपी पूरी तरह से घिरी हुई नजर आ रही थी. 

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अखिलेश यादव ओबीसी के साथ-साथ दलितों को भी सियासी संदेश दे रहे थे कि अभी ओबीसी का आरक्षण खत्म हुआ और आगे दलित आरक्षण भी समाप्त कर दिया जाएगा. इस तरह अखिलेश बीजेपी के खिलाफ ओबीसी-दलित समीकरण बनाने  की दिशा में आगे बढ़ रहे थे, जिसने बीजेपी ही नहीं बल्कि मायावती को भी बेचैन कर दिया था. ऐसे में मायावती ने बसपा नेताओं की फौरन बैठक बुलाकर बीजेपी-कांग्रेस के साथ सपा को भी कठघरे में खड़ा ही नहीं किया, बल्कि अतिपिछड़ी जातियों के साथ-साथ उन्हें दलित विरोधी भी बताने की कोशिश की.

यूपी में 52 फीसदी पिछड़े वर्ग की आबादी
मायावती ने कहा कि सपा ने जहां अतिपिछड़े वर्ग के आरक्षण पर हक मारा और दलित के प्रमोशन में रिजर्वेशन खत्म किया तो बसपा सरकार में अनुसूचित जाति/जनजाति के साथ अति पिछड़ों व पिछड़ों को भी आरक्षण का पूरा हक दिया गया. ऐसे में अब आरक्षण पर बड़ी बातें करने वाली सपा और अन्य पार्टियों का चेहरा बेनकाब हो चुका है. वहीं राजभर ने कहा कि चार बार सपा सत्ता में रही लेकिन कभी अतिपिछड़ी जातियों के लिए कुछ नहीं किया. राजभर ने सपा के साथ बसपा को टारगेट पर लिया और कहा कि सपा-बसपा सत्ता में काबिज रहीं, लेकिन दोनों ने ओबीसी की कमजोर जातियों को उनका हक देने का काम नहीं किया.

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दरअसल, उत्तर प्रदेश की सियासत मंडल कमीशन के बाद ओबीसी समुदाय के इर्द-गिर्द सिमट गई है. सूबे की सभी पार्टियां ओबीसी को केंद्र में रखते हुए अपनी राजनीतिक एजेंडा सेट कर रही हैं. यूपी में सबसे बड़ा वोटबैंक पिछड़ा वर्ग का है. सूबे में 52 फीसदी पिछड़े वर्ग की आबादी है, जिसमें 43 फीसदी गैर-यादव यानि जातियों को अतिपिछड़े वर्ग के तौर पर माना जाता है. ओबीसी की 79 जातियां हैं, जिनमें सबसे ज्यादा यादव और दूसरे नंबर कुर्मी समुदाय की है. 

सियासी वनवास झेल रही बीएसपी
यूपी में ओबीसी की सियासत मुलायम सिंह यादव ने शुरू किया तो अतिपिछड़ों की राजनीतिक ताकत को सबसे पहले कांशीराम ने समझा था. मुलायम सिंह ने ओबीसी की ताकतवर जातियों यादव-कुर्मी के साथ मुस्लिम का गठजोड़ बनाया तो कांशीराम ने अतिपिछड़ों में मौर्य, कुशवाहा, नई, पाल, राजभर, नोनिया, बिंद, मल्लाह, साहू जैसी समुदाय के नेताओं को बसपा संगठन से लेकर सरकार तक में प्रतिनिधित्व दिया था. अतिपिछड़ी जातियां ही बसपा की बड़ी ताकत बनी थी, लेकिन 2014 से बीजेपी का कोर वोटबैंक बना गया.

बीजेपी ने गैर-यादव ओबीसी जातियों को साधकर उत्तर प्रदेश में अपना सत्ता का सूखा खत्म किया था. वहीं ये जातियां हाथों से खिसक जाने के चलते बसपा को 10 सालों से सियासी वनवास झेलना पड़ रहा है और सपा भी 2017 से सत्ता से बाहर है. ऐसे में अखिलेश यादव की अब कोशिश यादव-मुस्लिम पर मजबूत पकड़ बनाए रखते ओबीसी के साथ-साथ दलित को भी एकजुट करना है तो मायावती की रणनीति अतिपिछड़ी जातियों और दलित फॉर्मूले को फिर से अमलीजामा पहनाने की है. 

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ओबीसी आरक्षण पर बढ़ा सियासी पारा
मायावती और राजभर के सपा पर आक्रमक होने से बीजेपी ने चैन की सांस ली है. योगी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक तरफ चुनाव टालने की है ताकि ओबीसी आरक्षण के साथ निकाय चुनाव करा सके. बसपा-राजभर जिस तरह से सपा को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं, उससे बीजेपी से ज्यादा सपा के लिए चिंता बढ़ रही है. इतना ही नहीं, पिछड़ा बनाम अतिपिछड़ा का मुद्दा गर्मा रहा है, जो बीजेपी के लिए सियासी संजीवनी बन सकता है. 

बीजेपी सूबे में ओबीसी आरक्षण को तीन हिस्सों में बांटने के लिए लंबे समय से वक्त का इंतजार कर रही है, लेकिन सियासी मजबूरियों के चलते खामोश थी. मायावती और राजभर ने जिस तरह से अतिपिछड़ी जातियों के आरक्षण का मुद्दा उठाया है उसे लेकर अब उसके उसे अमलीजामा पहनाने का मौका मिल सकता है. योगी सरकार ने ओबीसी आयोग का गठन भी कर दिया है और छह महीने में वह अपनी रिपोर्ट सौंपेगा. ऐसे में योगी सरकार ओबीसी आरक्षण को पिछड़े, अतिपिछड़े और अत्यंत पिछड़े में बांटने का दांव चल सकती है. यही वजह है कि अखिलेश यादव जातिगत जनगणना का मुद्दा उठा रहे हैं.

 

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