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पागल अपराधियों को सजा में कितनी छूट, कैसे साबित होती है दिमागी कमजोरी? जानिए, क्या कहते हैं वकील

बदायूं हत्याकांड में पुलिस ने आरोपी जावेद को गिरफ्तार कर लिया. मुख्य आरोपी का एनकाउंटर हो चुका, जिसके बारे में उसके ही रिश्तेदार मानसिक बीमारी की बात कर रहे हैं. ऐसा कई बार देखा गया है कि वारदात के बाद अपराधी को पागल बताया जाने लगे. लेकिन क्या इससे वे सजा से बच जाते हैं? और कैसे साबित हो कि अपराधी वाकई बीमार है, या बहाना कर रहा है?

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क्राइम के बाद कई बार अपराधी खुद को मानसिक बीमार बताते हैं. (Photo- AFP)
क्राइम के बाद कई बार अपराधी खुद को मानसिक बीमार बताते हैं. (Photo- AFP)

देश में खूंखार हत्याओं के कई मामले आते रहे, जिसमें क्राइम के बाद अपराधी खुद को मानसिक बीमार बताने लगते हैं. यहां तक कि उनके परिवार और वकील भी इस खेल में शामिल हो जाते हैं. वे तमाम खटराग करते हैं कि बीमार के बहाने से अपराधी सजा में छूट पा जाए. जानिए, दिमागी तौर पर बीमार लोगों के साथ क्या सुलूक करती है पुलिस और अदालत. 

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बदायूं में अब तक क्या-क्या हुआ

उत्तर प्रदेश के बदायूं में दोहरे हत्याकांड में एक के बाद नई बातें आ रही हैं. पुलिस के मुताबिक, नाई की दुकान चलाने वाले साजिद ने मंगलवार की शाम एक घर में घुसकर तीन नाबालिग भाइयों पर उस्तरे से हमला कर दिया. इसमें दो की मौत हो गई. मर्डर का आरोप अपने भाई जावेद के साथ था, जो कल ही पुलिस हिरासत में आया है. इस बीच एनकाउंटर में मारे गए साजिद को ही असल हत्यारा बताते हुए उसका परिवार साथ में यह भी कह रहा है कि वो मानसिक तौर पर बीमार था. 

केस की परतें खुलनी फिलहाल बाकी हैं तो पक्का नहीं कहा जा सकता कि फैमिली सच बोल रही है या नहीं, लेकिन मानसिक बीमारी का बहाना भी अक्सर अपराधी बनाते हैं. ऐसे कई केस आ चुके, जिसमें हत्यारे ने प्लानिंग के साथ मर्डर किया. बाद में पकड़ाने पर खुद को बीमार बताने लगा. क्या मेंटल इलनेस ऐसा हथियार है, जो अपराधी को बचा सकता है?

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what happens if the convict is mentally ill indian penal code photo AFP

भारतीय कानून क्या कहता है

दुनियाभर की अदालतें मानती हैं कि अगर कोई दिमागी तौर पर बीमार है, तो उसे हल्की सजा दी जाए. इसकी वजह ये है कि अपराध करते हुए उसे जुर्म की गंभीरता का अंदाजा ही नहीं रहता. उसे पता नहीं होता कि जो काम वो कर रहा है, वो गलत है, या किसी की जान ले सकता है. भारत में भी मेंटली चैलेंज्ड लोगों को कड़ी सजा में छूट मिलती रही. ये आईपीसी के 1860 के तहत होता है. 

फांसी की सजा नहीं

साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि गंभीरतम क्राइम के मामले में भी ऐसे लोगों को मौत की सजा नहीं दी जा सकती. यहां तक कि अगर अपराध के बाद दोषी की मानसिक हालत बिगड़ जाए, और इस दौरान उसे सजा सुनाई जा चुकी हो, तो भी फांसी नहीं दी जा सकती क्योंकि सजा पाते हुए उसे पता नहीं होता कि किस वजह से उसे पनिश किया जा रहा है.

तो क्या अपराधी मेंटल इलनेस के बहाने बच सकता है

इसे समझने के लिए हमने दिल्ली हाई कोर्ट के एडवोकेट मनीष भदौरिया से बात की.

वे कहते हैं- मुलजिम को पूरा हक है कि वो डिफेंस दे. जैसे ये जुर्म मैंने नहीं किया. मेरे भाई या फलां-फलां ने किया. यही काम फिलहाल बदायूं मामले में दूसरा आरोप कर रहा है. वो अपने मृत भाई पर दोष मढ़ रहा है. साथ ही ये बता रहा है कि वो दिमागी तौर पर संतुलित नहीं था. लेकिन ये तर्क उसपर भारी भी पड़ सकता है. 

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what happens if the convict is mentally ill indian penal code photo Unsplash

अगर वो जानता था कि उसका भाई साउंड मानसिक हालातों वाला नहीं, तो गार्जियन के तौर पर उसकी जिम्मेदारी थी कि साथ रहता. उसे कोई भी ऐसा काम करने से रोकता. लेकिन वो मौके से भाग गया. 

एक मसला और है. कोई मानसिक विक्षिप्त है तो दूसरों के ही कपड़े नहीं फाड़ेगा, सबसे पहले अपने कपड़े फाड़ेगा. पहला आरोपी केवल दूसरों के बच्चों पर हमला नहीं करता, अपने परिवार, अपने भाई पर करता. ऐसा नहीं हुआ, यानी आरोपी पर ये शक भी हो सकता है कि हत्या में कॉमन इंटेंशन रहा हो. दोनों चाहते हों कि उन्हें मारा जाए.  

क्या खुद को पागल साबित किया जा सकता है

ये साबित करना आसान नहीं. इसे कोर्ट कई तरीकों से वरिफाई करती है.

मेडिकल टीम बैठती है जो कई जांचें करती है.

दोषी का पास्ट चेक किया जाता है कि कहीं वो सजा से बचने के लिए झूठ तो नहीं बोल रहा.

काफी सारे मेडिकल दस्तावेज दिखाने होते हैं. अ

अलग-अलग एक्सपर्ट बात करते हैं ताकि दिमागी असंतुलन का पता लग सके. वे मिलकर अपनी रिपोर्ट अदालत को सौंपते हैं. 

what happens if the convict is mentally ill indian penal code photo Unsplash

क्या मानसिक तौर पर कमजोर अपराधी को सजा हो सकती है 

अगर पक्का हो गया कि दोषी वाकई पागल है तो कोर्ट उसे सीधे रिहा नहीं कर देती. पहले ये चेक किया जाता है कि किन हालातों में उसने क्राइम किया. मान लीजिए कि वो सड़क पर जा रहा था, और किसी ने उसे उकसाते हुए पत्थर फेंका. बदले में वो ईंट फेंक दे, जिससे किसी की मौत हो जाए. इस केस में उसे सजा नहीं मिलती. लेकिन ट्रीटमेंट का ऑर्डर दे दिया जाता है. अब राज्य और पुलिस की जिम्मेदारी है कि उसका पूरा इलाज करवाए. तब तक वो बाहर नहीं घूम सकता. 

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उकसाए बिना जुर्म करने पर सजा

इनसेन माइंड भी अगर बिना किसी उकसावे या वजह के जुर्म करता है तो उसे सजा मिलती है. उसे डिटेन कर लिया जाएगा. अस्पताल में इलाज करवाया जाएगा और ठीक होने पर सजा के लिए ले जाया जाएगा. उसे सजा से कोई रियायत नहीं मिलती. 

क्या हो अगर कोई जेल में असंतुलित हो जाए

अगर किसी ने जुर्म किया, सजा भी हुई, लेकिन जेल में सजा काटने के दौरान वो मानसिक संतुलन खो बैठे, तब भी कई नियम हैं. उसका इलाज शुरू होता है. अगर जेल में इलाज की सुविधा नहीं, तो अस्पताल में भर्ती किया जाता है. वो ठीक होकर लौटेगा, फिर सजा काटेगा. 

अस्पताल में इलाज के दौरान समय-समय पर मेडिकल बोर्ड ये भी देखता है कि दोषी मरीज की हालत में कितना सुधार हो चुका. ठीक होने की दशा में उसे जेल भेज दिया जाता है. वहीं अगर लंबे इलाज के बाद भी लगे कि दोषी शायद कभी ठीक न हो सके तो कोर्ट दोबारा विचार भी कर सकती है.

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