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UP: नकल करना 'पाप' ही नहीं देश की सुरक्षा के लिए भी 'खतरा', लगेगा NSA, जानिए कानून में क्या प्रावधान?

देश में उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में नकल को लेकर सरकारों की खूब फजीहत होती रही है. ऐसे में अब योगी सरकार ने दावा किया है कि इस बार बोर्ड परीक्षा में नकल रोकने के लिए सख्त कदम उठाए गए हैं. परीक्षा में नकल करने वाले छात्रों को अब बख्शा नहीं जाएगा. उन पर NSA लगाया जाएगा.

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यूपी में परीक्षा में नकल करने पर लगेगा NSA एक्ट
यूपी में परीक्षा में नकल करने पर लगेगा NSA एक्ट

'नकल करना पाप है'...बचपन से ही हमने अपने माता-पिता और अध्यापकों से यह कहावत सुनी है. लेकिन अब उत्तर प्रदेश में नकल करना पाप के साथ देश की सुरक्षा के लिए खतरा भी होगा. उत्तर प्रदेश में 16 फरवरी से बोर्ड की परीक्षाएं हैं. इससे पहले उत्तर प्रदेश सरकार ने परीक्षा में नकल रोकने के लिए बड़ा ऐलान किया है. ये ऐलान इतना बड़ा है कि हजारों लाखों छात्रों की नींद उड़ा सकता है. दरअसल, यूपी में अब 10वीं और 12वीं की परीक्षा के दौरान नकल करते हुए पकड़े जाने पर NSA (राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम-1980 ) लगेगा. साथ ही नकल करने वाले, इसमें मदद करने वाले शिक्षक या अन्य के शामिल होने पर संपत्ति भी जब्त कर ली जाएगी. 

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देश में उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में नकल को लेकर सरकारों की खूब फजीहत होती रही है. ऐसे में बोर्ड परीक्षाओं में नकल रोकने के लिए यूपी सरकार ने तमाम तैयारियां की हैं. महानिदेशक स्कूली शिक्षा विजय किरन आनंद के मुताबिक, नकल रोकने के लिए सख्त कदम उठाए गए हैं. परीक्षा में नकल करने वाले छात्रों को अब बख्शा नहीं जाएगा. NSA लगाया जाएगा. नकल में शामिल पाए जाने वाले परीक्षा केंद्र के व्यवस्थापक कक्ष निरीक्षक के खिलाफ FIR दर्ज की जाएगी. 

यूपी में अब नकल 'देश की सुरक्षा के लिए खतरा'

यूपी में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून बेहद सख्त कानून माना जाता है. NSA 'देश की सुरक्षा के लिए खतरा' होने जैसी स्थिति पर लगाया जाता है. इस कानून के तहत पुलिस संदिग्ध व्यक्ति को 12 महीनों तक हिरासत में रख सकती है. हिरासत में रखने के लिए बस बताना होता है कि इस व्यक्ति को जेल में रखा गया है. हाल ही में राजस्थान में पेपर लीक के मामले में आरोपियों पर NSA की कार्रवाई की गई थी. पिछले साल रामनवमी पर 

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क्या है NSA?

नेशनल सिक्योरिटी एक्ट (NSA) या राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका), एक ऐसा कानून है जिसके तहत किसी खास खतरे के चलते व्यक्ति को हिरासत में लिया जा सकता है. अगर प्रशासन को लगता है कि किसी शख्स की वजह से देश की सुरक्षा और सद्भाव को खतरा हो सकता है, तो ऐसा होने से पहले ही उस शख्स को रासुका के तहत हिरासत में ले लिया जाता है.

कब बना कानून?

इस कानून को 1980 में देश की सुरक्षा के लिए सरकार को ज्यादा अधिकार देने के मकसद से बनाया गया था. इस कानून का इस्तेमाल पुलिस कमिश्नर, डीएम या राज्य सरकार कर सकती है. अगर सरकार को लगे कि कोई व्यक्ति बिना किसी मतलब के देश में रह रहा है और उसे गिरफ्तार किए जाने की जरूरत है तो उसे भी गिरफ्तार कर सकती है. कुल मिलाकर ये कानून किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को हिरासत में या गिरफ्तार करने का अधिकार देता है.

क्या है NSA कानून का इतिहास? 

- ये एक प्रिवेंटिव कानून है, जिसका मतलब होता है कि किसी घटना के होने से पहले ही संदिग्ध को गिरफ्तार किया जा सकता है. इस कानून का इतिहास ब्रिटिश शासन से जुड़ा हुआ है. 
- 1881 में ब्रिटिशर्स ने बंगाल रेगुलेशन थर्ड नाम का कानून बनाया था. इसमें घटना होने से पहले ही गिरफ्तारी की व्यवस्था थी. फिर 1919 में रॉलेट एक्ट लाया गया. इसमें ट्रायल की व्यवस्था तक नहीं थी. यानी, जिसे हिरासत में लिया गया, वो अदालत भी नहीं जा सकता था. इसी कानून के विरोध के चलते ही जलियांवाला बाग कांड हुआ था. 
- भारत जब आजाद हुआ तो प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की सरकार में 1950 में प्रिवेंटिव डिटेंशन एक्ट आया. 31 दिसंबर 1969 को इसकी अवधि खत्म हो गई. 1971 में इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहते मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट यानी मीसा आया. 1975 में इमरजेंसी के दौरान राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ इस्तेमाल किया गया. 
- 1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनी, तब इस मीसा को खत्म कर दिया गया. 1980 में फिर इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं. तब उनकी सरकार में 23 सितंबर 1980 को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून संसद से पास हुआ. 27 दिसंबर 1980 को ये कानून बन गया.

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NSA कानून में क्या क्या प्रावधान? 

- इस कानून के तहत किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को 3 महीने तक बिना जमानत के हिरासत में रखा जा सकता है. जरूरत पड़ने पर इसकी अवधि 3-3 महीने के लिए बढ़ाई जा सकती है.
- इस कानून के तहत हिरासत में लिए गए व्यक्ति को 12 महीने तक जेल में रखा जा सकता है. हिरासत में रखने के लिए संदिग्ध पर आरोप तय करने की जरूरत भी नहीं होती.
- गिरफ्तारी के बाद राज्य सरकार को बताना पड़ता है कि इस व्यक्ति को जेल में रखा गया है और उसे किस आधार पर गिरफ्तार किया गया है. 
- हिरासत में लिया गया व्यक्ति सिर्फ हाईकोर्ट के एडवाइजरी बोर्ड के सामने अपील कर सकता है. उसे वकील भी नहीं मिलता. जब मामला कोर्ट में जाता है तब सरकारी वकील कोर्ट को मामले की जानकारी देते हैं. 

 

 

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