रात का सन्नाटा… ऊंची-ऊंची और मोटी दीवारों से घिरी गाजीपुर जेल के भीतर, जहां सिर्फ सन्नाटा होना चाहिए था, वहां कुछ और ही खेल खेला जा रहा था. एक मोबाइल फोन की स्क्रीन चमकी, नंबर डायल हुआ, और दूसरी तरफ किसी के चेहरे का रंग उड़ गया. 'अगर शिकायत की, तो अंजाम बुरा होगा…' आवाज हल्की थी, लेकिन धमकी इतनी गर्म थी कि पीड़ित के रोंगटे खड़े हो गए.
गाजीपुर जेल में सलाखों के पीछे बंद अपराधियों ने एक नया धंधा शुरू कर दिया था. 'अवैध कॉल सेंटर'का. बाहर बैठे लोगों को धमकाने, सौदेबाजी करने और अपने गुनाहों को छिपाने के लिए जेल ही इनका नया ठिकाना बन चुका था. कोई सोच भी नहीं सकता था कि जिस जगह पर अपराधियों को सुधरना चाहिए, वहीं से वो अपना गैंग ऑपरेट कर रहे थे और हैरानी की बात ये थी कि इस खेल में जेल के कर्मचारी भी शामिल थे. लेकिन कहते हैं न, अपराध चाहे कितना भी शातिर हो, एक न एक दिन बेनकाब हो ही जाता है. और यही हुआ गाजीपुर जेल में भी.
धमकी से खुला राज, छापे में मिला काला सच
कुछ दिन पहले बिहार के एक युवक ने पुलिस को बताया कि उसे जेल के अंदर से धमकी भरा फोन आया था. कॉल करने वाला कोई और नहीं, बल्कि विनोद गुप्ता था. वही कुख्यात ठग, जिसने बिहार सचिवालय में नौकरी दिलाने के नाम पर सैकड़ों छात्रों से करोड़ों की ठगी की थी और अब गाजीपुर जेल में बंद था. जैसे ही प्रशासन को खबर लगी, डीएम आर्यका अखौरी और एसपी ओमवीर सिंह ने जेल में छापा मारा. अंदर का नजारा देखकर अफसरों के भी होश उड़ गए. कैदियों के पास मोबाइल थे, अवैध पीसीओ चल रहा था, और कुछ खास कैदियों को वीआईपी ट्रीटमेंट दिया जा रहा था. यही नहीं, जेल अधिकारी भी इस खेल में बराबर के साझीदार थे.
जेलर और डिप्टी जेलर पर गिरी गाज
जांच हुई, सच्चाई सामने आई और फिर कार्रवाई का पहिया घूम गया. जेलर राकेश कुमार वर्मा और डिप्टी जेलर सुखवंती देवी को तत्काल प्रभाव से सस्पेंड कर दिया गया. अब गाजीपुर जेल में हर फोन कॉल को ट्रेस किया जा रहा है, हर कैदी की हरकत पर नज़र रखी जा रही है, और इस काले खेल के बाकी मोहरों की तलाश की जा रही है.