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जो कांग्रेस राम मंदिर का ताला खुलवाने का दावा करती है, उसी ने मंदिर उद्घाटन का न्योता क्यों ठुकराया? 5 point में समझें

कांग्रेस के ज्यादातर सहयोगी दलों ने साफ कर दिया है कि वो राम लला की मूर्ति के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में नहीं जाएंगे. जबकि न्योता मिलने के बाद कांग्रेस नेता यही कहते आ रहे थे कि इंतजार करिए. जल्द बता देंगे. सोनिया गांधी का पॉजिटिव रुख है. अगर वो नहीं जाएंगी तो किसी पार्टी नेता/ प्रतिनिधिमंडल को अयोध्या भेजेंगे.

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सोनिया गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे और अधीर रंजन चौधरी 22 जनवरी को अयोध्या नहीं जाएंगे.
सोनिया गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे और अधीर रंजन चौधरी 22 जनवरी को अयोध्या नहीं जाएंगे.

अयोध्या में राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में कांग्रेस नेता शामिल नहीं होंगे. एक दिन पहले पार्टी हाईकमान ने अपना स्टैंड क्लीयर कर दिया है. कांग्रेस ने अपने बयान में यह भी कहा कि हमारे जिन नेताओं को न्योता मिला है, वे नहीं जाएंगे. अन्य कोई नेता भी इस कार्यक्रम का हिस्सा नहीं बनेगा. इसे कांग्रेस की बड़ी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है. चूंकि न्योता मिलने के 21 दिन बाद पार्टी ने सार्वजनिक रूप से अयोध्या ना जाने का ऐलान किया है. इससे पहले कांग्रेस खुद को राम और राम मंदिर से जोड़ती आ रही है. सॉफ्ट हिंदुत्व का कार्ड भी खेलने से नहीं हिचकती है. लेकिन, इस मेगा इवेंट के न्योते को क्यों ठुकराया है, इसके मायने निकाले जा रहे हैं. पांच पॉइंट में जानिए...

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बुधवार को कांग्रेस ने एक बयान जारी किया और बताया कि पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, सोनिया गांधी और अधीर रंजन को  22 जनवरी को राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल होने का न्योता मिला था. चूंकि यह बीजेपी और आरएसएस का इवेंट है और चुनावी लाभ के लिए अधूरे मंदिर का उद्घाटन किया जा रहा है. इसलिए कांग्रेस पार्टी न्योते को सम्मान अस्वीकार करती है. कांग्रेस पार्टी से कोई नेता अयोध्या के कार्यक्रम में नहीं जाएगा. इसके साथ ही कांग्रेस ने अपने आधिकारिक नोट में उस लाइन को भी जोड़ा, जिसे पिछले दिनों अखिलेश यादव, ममता बनर्जी, सीपीएम नेता वृंदा करात, सीताराम येचुरी के बयानों में सुना गया है.

1. बीजेपी और आरएसएस का इवेंट है...

कांग्रेस ने भी उसी लाइन को दोहराया है और धर्म को एक निजी मसला बताकर किनारा किया है. पढ़िए कांग्रेस ने अपने बयान में क्या कहा...
''हमारे देश में लाखों लोग भगवान राम की पूजा करते हैं. धर्म एक निजी मामला है. लेकिन आरएसएस / बीजेपी ने लंबे समय से अयोध्या में मंदिर को राजनीतिक प्रोजेक्ट बनाया है. बीजेपी और आरएसएस के नेताओं द्वारा अधूरे मंदिर का उद्घाटन स्पष्ट रूप से चुनावी लाभ के लिए किया जा रहा है. 2019 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पालन करते हुए और भगवान राम का सम्मान करने वाले लाखों लोगों की भावनाओं का सम्मान करते हुए मल्लिकार्जुन खड़गे, सोनिया गांधी और अधीर रंजन चौधरी ने स्पष्ट रूप से आरएसएस/बीजेपी के कार्यक्रम के निमंत्रण को सम्मानपूर्वक अस्वीकार कर दिया है.''

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2. बीजेपी के एजेंडे में ना फंसा जाए...

तीन महीने से भी कम समय में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं. बीजेपी ने यह साफ कर दिया है कि वो राम मंदिर के मुद्दे को भुनाएगी और कांग्रेस को घेरने के लिए 'हिंदू विरोधी' के रूप में प्रचारित करने में कसर नहीं छोड़ेगी. ऐसे में कांग्रेस के शीर्ष नेताओं का निर्णय बीजेपी के एजेंडे में ना फंसने का हो सकता है. कांग्रेस खुद को धर्म निरपेक्ष पार्टी कहती है. उसका अपना बड़ा वोट बैंक है. शीर्ष नेतृत्व के अंदरखाने यह डर है कि अगर वो अयोध्या जाती, तब भी बीजेपी घेरती और मंदिर आने के लिए मजबूर करने का दम भरती. ऐसे में वो बीजेपी के एजेंडे में फंस सकती थी और सफाई भी देनी पड़ती. कांग्रेस का यह कदम राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में 'अयोध्या सिद्धांत' की कमी को उजागर करता है.

3. कांग्रेस के पास बड़ा मुस्लिम वोट बैंक

देश में मुस्लिम वोटर्स की संख्या करीब 15 प्रतिशत है. बड़ी बात यह है कि लोकसभा चुनाव में देश में सबसे ज्यादा मुस्लिम वोट कांग्रेस पार्टी को ही मिलते हैं. कांग्रेस के पास उत्तर भारत समेत पूरे देश में बड़ा मुस्लिम वोट बैंक है. पिछले चुनाव में उत्तर भारत के कई राज्यों में कांग्रेस को 50 प्रतिशत से ज्यादा मुस्लिमों ने वोट किया था. यानी आधे से ज्यादा मुस्लिम वोट बैंक कांग्रेस के पास है. जबकि देशभर में भी सबसे ज्यादा मुसलमानों ने कांग्रेस को वोट देकर पसंद किया था. देश में 33 फीसदी से ज्यादा मुस्लिमों ने कांग्रेस उम्मीदवारों को वोट दिया था. जानकार कहते हैं कि पार्टी अगर अयोध्या जाती तो इससे एक बड़ा वर्ग नाराज हो सकता था और इसका खामियाजा कांग्रेस को चुनाव में भुगतना पड़ता. कांग्रेस को इससे फायदा मिल जाता है. कांग्रेस के अयोध्या नहीं जाने से मुस्लिम तुष्टिकरण की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है. देश के मुसलमानों को यह संदेश जाएगा कि गांधी परिवार और कांग्रेस की तरफ से कोई नेता अयोध्या कार्यक्रम में नहीं गया. कांग्रेस मुसलमानों की सबसे बड़ी समर्थक है. कांग्रेस उनकी हितैषी है.  

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4. हार्ड कोर हिंदुत्व से अलग राजनीति

कांग्रेस यह भी कहती है कि राम मंदिर के कार्यक्रम में ना जाने का फैसला सोच समझकर लिया गया है. कांग्रेस ने करीब 21 दिन यह बताने में लगा दिए कि पार्टी नेता 22 जनवरी को अयोध्या नहीं जाएंगे. कांग्रेस से पहले 'राम सबके हैं' कहते हुए कांग्रेस के दूसरे सहयोगी भी लगभग वही वजह गिनाते हुए इनकार कर चुके हैं, जो कांग्रेस अब बताती है. इतिहास को देखा जाए तो 90 के दशक में कांग्रेस ने अपने घोषणा-पत्र में कानूनी तरीके या बातचीत के जरिए राम मंदिर निर्माण के लिए हामी भरी थी. इस लिहाज से तो उसे अयोध्या के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में जाना चाहिए था. लेकिन, यह दांव बताता है कि कांग्रेस हार्ड कोर हिंदुत्व से अलग राजनीति करना चाहती है. इसके अलग-अलग इलाकों के हिसाब से कई बड़े फैक्टर भी हैं.

5. साउथ को साधने में मिलेगी मदद?

उत्तर भारत में सिर्फ हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है. हाल ही में राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने सत्ता गंवा दी है. मध्य प्रदेश में भी इस बार बुरी हार मिली है. पंजाब, दिल्ली, उत्तराखंड, यूपी समेत अन्य राज्यों में भी पार्टी का बड़ा वोट बैंक खिसक गया है. इसके इतर दक्षिण भारत की तरफ देखा जाए तो वहां कांग्रेस मजबूत होते दिख रही है. पहले कर्नाटक में सरकार बनाई, फिर तेलंगाना में भी जीत मिली. आंध्र प्रदेश में भी सत्ता में सहयोगी पार्टी है. अयोध्या को लेकर यह बात निकलकर आई कि एक फैसले से पार्टी को केरल में झटका लग सकता है. उसे चुनाव में नुकसान उठाना पड़ेगा. कर्नाटक, तेलंगाना जैसे राज्यों में सीटें कम हो सकती हैं. यहां कांग्रेस को अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद है. उत्तरी, पश्चिमी और अन्य मध्य राज्यों में पार्टी कोई खास फायदा नहीं होगा, जहां बीजेपी-कांग्रेस के बीच सीधी लड़ाई है.

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इससे पहले नॉर्थ बनाम साउथ की लड़ाई में भी कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व की चुप्पी पर बीजेपी सवाल उठाते आई है. दक्षिण भारत में कांग्रेस और उसके सहयोगी दल लगातार बयानबाजी करते देखे गए हैं. लेकिन कांग्रेस हाईकमान ने चुप रहकर इस लड़ाई से दूरी बनाई है. जानकार कहते हैं कि दिसंबर में विधानसभा चुनाव के दरम्यान सनातन विरोधी बयानों की कीमत कांग्रेस को उत्तर भारत के राज्यों में चुकानी पड़ी है. लेकिन, चुप्पी साधे रहने से साउथ में फायदा पहुंचा है.

'सहयोगी दलों के साथ खड़े होने का संदेश'

कांग्रेस के ज्यादातर सहयोगी दलों ने साफ कर दिया है कि वो राम लला की मूर्ति के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में नहीं जाएंगे. जबकि न्योता मिलने के बाद कांग्रेस नेता यही कहते आ रहे थे कि इंतजार करिए. जल्द बता देंगे. सोनिया गांधी का पॉजिटिव रुख है. अगर वो नहीं जाएंगी तो किसी पार्टी नेता/ प्रतिनिधिमंडल को अयोध्या भेजेंगे. इस बीच, कांग्रेस के ज्यादातर सहयोगी दलों को या तो न्योता नहीं मिला या वो खुलकर संकेत देने लगे थे कि अयोध्या के कार्यक्रम में नहीं जाएंगे. उद्धव ठाकरे गुट अयोध्या जाने की सलाह दे रहा था. अरविंद केजरीवाल और और शरद पवार न्योता मिलने का इंतजार कर रहे हैं. लालू प्रसाद यादव, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, सीताराम येचुरी, वृंदा करात जैसे नेताओं ने अयोध्या ना जाने का फैसला लिया है.

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'कांग्रेस के फैसले में राजनीतिक झलक'

कांग्रेस कहती है कि धर्म एक निजी मामला है. लेकिन अयोध्या में राम मंदिर बीजेपी और आरएसएस का पॉलिटिकल प्रोजेक्ट है. इसलिए वो इस कार्यक्रम में शामिल नहीं होंगे. यही बात कांग्रेस के फैसले में भी झलकती है. जानकार कहते हैं कि कांग्रेस भी चुनावी फायदे के लिए अयोध्या जाने से किनारा कर गई है. कुछ को जाने से फायदा होगा. कुछ को ना जाने से भी फायदा पहुंचेगा. कांग्रेस भी सोच रही है कि अयोध्या ना जाने से पार्टी को ज्यादा फायदा हो सकता है.

ताला खुलवाने से लेकर राम मंदिर निर्माण तक का श्रेय...

अक्सर कांग्रेस नेताओं को भी राम मंदिर निर्माण का श्रेय लेने की कोशिश करते देखा गया है. मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान पूर्व सीएम कमलनाथ ने एक इंटरव्यू में कहा था कि हमें इतिहास नहीं भूलना चाहिए. राजीव गांधी ने पहली बार राम मंदिर का ताला खुलवाया था. राम मंदिर एक पार्टी और एक व्यक्ति का नहीं है. यह भारत के हर नागरिक का है. राम मंदिर को बनाने में किसी के घर का पैसा तो नहीं लगा है. यह सरकार के पैसे से बन रहा है. राम मंदिर को लेकर प्रधानमंत्री रहते राजीव गांधी ने भी काफी कुछ किया था. 1986 में पहली बार राम मंदिर का ताला खुलवाने का श्रेय भी राजीव गांधी को ही हासिल है. राजीव गांधी ने सिर्फ ताला ही नहीं खुलवाया था, बल्कि विश्व हिंदू परिषद को शिलान्यास की अनुमति भी दी थी और कार्यक्रम में शामिल होने के लिए अपने मंत्री बूटा सिंह को भी भेजा था. ये राजीव गांधी ही रहे हैं जिनके कार्यकाल में दूरदर्शन पर रामानंद सागर के रामायण सीरियल को प्रसारित कराया गया. 1989 का चुनाव करीब आने तक राजीव गांधी ने राम राज्य लाने का वादा भी किया था.

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'कांग्रेस को नहीं मिल सका राजनीतिक लाभ'

दिलचस्प बात यह है कि राम मंदिर कार्यक्रम में शामिल होने से इनकार करने के बाद भी कांग्रेस के अंदरखाने से खींचतान है. पार्टी सूत्र कहते हैं कि आने वाले समय में कांग्रेस के भीतर कुछ बेचैनी देखने को मिल सकती है. पुराने नेता कहते हैं कि अयोध्या मुद्दा कांग्रेस को भ्रमित और विभाजित कर रहा है. चुनावी संदर्भ में देखा जाए तो कांग्रेस की तरफ से 'राम राज्य' के वादे से लेकर 'बाबरी मस्जिद' की रक्षा तक की टिप्पणियां की गईं. लेकिन 1992 के बाद से कांग्रेस को कभी राजनीतिक लाभ नहीं मिल सका है. निजी तौर पर ज्यादातर कांग्रेसी राम मंदिर मुद्दे पर निष्पक्ष या पारदर्शी तरीके से बात करने से बचना पसंद करते हैं. 

'जब राजीव ने अयोध्या से शुरू किया था चुनावी अभियान'

सोनिया गांधी, राहुल गांधी और उनसे पहले राजीव गांधी भी अयोध्या को लेकर अलग-अलग मौकों पर अक्सर अलग-अलग भाषा में बात करते देखे गए. उनके सामूहिक प्रयास राजनीतिक लाभ लाने में विफल रहे हैं. 1989 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 'राम राज्य' का वादा किया था और अयोध्या में सरयू नदी के तट से अपने लोकसभा चुनाव अभियान को शुरू किया था. नरसिम्हा राव ने अपनी पुस्तक में बताया कि राजीव गांधी और उनकी टीम ने विवादित स्थल पर 'शिलान्यास' भी किया था. लेकिन 1989 की चुनावी हार और मुस्लिम वोटों के नुकसान के बाद राजीव गांधी 'राम राज्य' के बारे में बात करना बंद करने के लिए मजबूर हो गए थे. 6 दिसंबर 1992 को जब बाबरी मस्जिद गिरी तो सोनिया गांधी ने पहली बार अपना राजनीतिक बयान दिया था. उन्होंने राजीव गांधी फाउंडेशन के अध्यक्ष के रूप में पी.चिदंबरम और ट्रस्ट के अन्य सदस्यों को खारिज किया और कहा, अगर राजीव जीवित होते तो वो बाबरी विध्वंस की अनुमति नहीं देते.

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'गांधी परिवार सत्ता में होता तो विवादित ढांचा ध्वस्त नहीं होता'

जनवरी 1998 में जब सोनिया गांधी औपचारिक रूप से राजनीति में शामिल हुईं तो उन्होंने हैदराबाद में यह बयान फिर से दोहराया. मुख्य रूप से मुस्लिम वोटर्स की सभा को संबोधित करते हुए कहा, अगर गांधी परिवार का कोई भी सदस्य सत्ता में होता तो विवादित ढांचा ध्वस्त नहीं होता. अप्रैल 2007 में राहुल गांधी ने भी उत्तर प्रदेश में यही बयान दोहराया था. 2004 में सोनिया गांधी ने एक इंटरव्यू में कहा, उस दिन ना सिर्फ आंसू आए, हम सभी व्याकुल थे. केंद्र में कांग्रेस सत्ता में थी, लेकिन यह मत भूलिए कि यूपी में बीजेपी सरकार थी.

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