
दिल्ली में 17 फरवरी को जब बसपा के देशभर के कोऑर्डिनेटरों की बैठक हुई तभी मायावती ने उसे बैठक में यह बात बता दी थी कि आकाश आनंद नेशनल कोऑर्डिनेटर नहीं रहेंगे. इसके बाद 2 मार्च को लखनऊ में बुलाई अपनी बड़ी मीटिंग के बाद उन्होंने इसका ऐलान भी कर दिया. जिसमें दूसरी बार आकाश पार्टी के सभी पदों से मुक्त कर दिए गए.
आकाश आनंद हों या फिर उनके ससुर और मायावती के पुराने वफादार रहे अशोक सिद्धार्थ दोनों को यह बात मालूम हो चुकी थी कि अब पार्टी में उनके बुरे दिन शुरू हो चुके हैं. आकाश आनंद को कोऑर्डिनेटर पद और अपने उत्तराधिकारी से हटाने के पहले मायावती अशोक सिद्धार्थ को पार्टी से ही निलंबित कर चुकी थीं.
दरअसल, मायावती को काफी वक्त से यह लगने लगा था कि आकाश आनंद जिन्हें उन्होंने अपनी पार्टी का उत्तराधिकारी घोषित किया है वह पूरी तरीके से अपने ससुर अशोक सिद्धार्थ के प्रभाव में हैं. राष्ट्रीय कोऑर्डिनेटर रहते हुए आकाश पर अशोक सिद्धार्थ का प्रभाव ज्यादा है और अशोक सिद्धार्थ मायावती के नाक के नीचे अपना एक समानांतर सिस्टम चला रहे हैं. जिसमें देश के बड़े कोऑर्डिनेटर और नेता बगैर मायावती की जानकारी के इनके सिस्टम का हिस्सा बन चुके हैं.
चूंकि, अशोक सिद्धार्थ के पास दक्षिणी राज्यों की कमान हुआ करती थी, यानी वह दक्षिणी राज्यों के प्रभारी थे, ऐसे में चंदे से लेकर संगठन तक पर अशोक का असर था और मायावती को लगने लगा था कि अशोक सिद्धार्थ यहां अपना एक समानांतर सिस्टम चला रहे हैं.
कहा जाता है कि अशोक सिद्धार्थ कभी मायावती के बेहद ही खास पदाधिकारी थे लेकिन हाल के दिनों में वह जगह रामजी गौतम ने ले ली है, जो अब नेशनल कोऑर्डिनेटर बनाए गए हैं. मायावती के भीतर यह बात गहरी बैठ चुकी थी या यूं कहें आकाश के विरोधियों ने मायावती के मन में ये बात भर दी थी कि अशोक सिद्धार्थ, आकाश आनंद और आकाश आनंद की पत्नी प्रज्ञा एक तिकड़ी बन कर पार्टी के पुराने सिस्टम को चैलेंज कर रहे हैं. आकाश की पत्नी प्रज्ञा का हालांकि नाम मायावती ने नहीं लिखा है लेकिन अपने प्रेस रिलीज में अपने बहू को "वह लड़की" लिखकर जिक्र जरूर किया है.
आकाश आनंद को हरियाणा का प्रभारी बनाया गया था, दिल्ली का प्रभारी बनाया गया था, मगर पार्टी वहां कुछ कर नहीं पाई. दरअसल, आकाश आनंद बहुजन समाज पार्टी के "किताब सिस्टम" को चैलेंज कर रहे थे और पिछले कई अलग-अलग राज्यों के चुनाव में उन्होंने इस "किताब सिस्टम" का कार्यकर्ताओं और के सामने विरोध भी कर दिया था, जो पार्टी के परंपरागत नेताओं को चैलेंज करने जैसा था.
"किताब सिस्टम" का मतलब बसपा के भीतर पार्टी के लिए चंदा जुटाने की एक विशेष प्रक्रिया कहीं जाती है, जिसे पार्टी का कैडर अच्छे से समझता है.
एक तरफ चुनावी नाकामी दूसरी तरफ "किताब सिस्टम" का विरोध, पार्टी के भीतर आकाश के काम करने के तौर तरीकों पर मायावती के करीबी नेता सवाल उठाने लगे थे, और मायावती का सब्र भी जवाब दे रहा था.
मायावती ने हाल के दिनों में आकाश को किनारे लगाने की प्लानिंग के संकेत भी दे दिए थे. लखनऊ में हुई पिछली बैठक में आकाश के भाई ईशान आनंद को भी मायावती ने आकाश के बराबर में खड़ा किया था. वह तभी यह मैसेज दे रही थी कि आकाश आनंद खुद को इकलौते बसपा की विरासत के हकदार ना समझें उनके पास विकल्प है.
बताते चलें कि मायावती ने पहली बार अपने भतीजे आकाश आनंद को किनारे नहीं लगाया है, बल्कि इसके पहले भी पार्लियामेंट चुनाव के बीच में ही मायावती ने आकाश को कोऑर्डिनेटर पद से हटा दिया था. साथ-साथ चुनाव की कमान भी उनसे छीन ली थी. हालांकि, तबतक आकाश आनंद अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों मे एक बड़ी पैठ बना चुके थे. बाद में मायावती ने कुछ नसीहतों के साथ आकाश की वापसी कराई लेकिन अब ऐसा लगता है कि लंबे समय के लिए बसपा के दरवाजे आकाश आनंद के लिए बंद हो गए हैं. तभी आकाश आनंद ने ट्वीट कर लिखा है कि 'धैर्य के साथ लंबी लड़ाई के लिए तैयार रहना होगा.'
हाल के दिनों में मायावती के कुछ एक्शन पर नजर डालें तो मायावती ने अपने कई पदाधिकारी और पुराने कार्यकर्ताओं को कुछ खास शादियों में जाने की वजह से निकाला है और इस बार आकाश और अशोक सिद्धार्थ पर भी यह बड़ी कार्रवाई के पीछे की तात्कालिक वजह अशोक के बेटे और आकाश के साले की शादी भी रही.
7 फरवरी को आगरा में आकाश आनंद के साले की शादी थी, मायावती ने कई नेताओं को उसमें जाने से मना किया था क्योंकि वह अशोक सिद्धार्थ के बेटे की शादी थी, जिससे मायावती नाराज चल रही थीं. लेकिन उस शादी में आकाश आनंद भी गए और कई ऐसे नेता और कोऑर्डिनेटर भी पहुंच गए जो अशोक सिद्धार्थ के करीबी भी माने जाते हैं. बेटे की साले की शादी होते हुए इसमें आनंद कुमार नहीं गए जो आकाश आनंद के पिता हैं.
कहा जाता है कि इसके बाद मायावती के सब्र का बांध टूट गया और 17 फरवरी की बैठक में उन्होंने आकाश आनंद और उनके ससुर के खिलाफ अपने कऑर्डिनेटरों को बता दिया था कि अब यह दोनों बाहर होंगे.
पार्टी के नेता और और लंबे समय से बसपा को करीब से देख रहे एक बड़े नेता का मानना है कि लगातार तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन दूसरी तरफ पार्टी के भीतर समानांतर संगठन बन जाने का खतरे ने मायावती को यह कदम उठाने पर मजबूर कर दिया है. अब नजर इस बात पर होगी कि आकाश आनंद क्या आने वाले दिनों में पार्टी के भीतर बगावत का कोई झंडा बुलंद करेंगे या फिर चुपचाप अपने वक्त का इंतजार करेंगे.