सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सरकार के बुलडोजर एक्शन पर सख्त टिप्पणी की. कोर्ट ने शासन और प्रशासन की कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर कोई व्यक्ति दोषी भी है, तो भी उसके घर को गिराया नहीं जा सकता. विपक्ष अक्सर बीजेपी सरकार पर ये आरोप लगाता रहा है कि उसकी पार्टी से जुड़े आरोपियों पर दूसरों की तुलना में बुलडोजर की कार्रवाई नरम रहती है.
ऐसा ही कुछ वाराणसी में भी देखने को मिलता है, जहां लगभग 1 साल पहले IIT-BHU में बीटेक सेकंड ईयर की छात्रा के साथ हुए गैंगरेप की घटना हुई थी. इसमें बीजेपी आईटी सेल के तीन पदाधिकारियो को आरोपी बनाया गया था. पिछले साल 22 अगस्त को हुई घटना के लगभग 2 महीने बाद तीनों आरोपियों की गिरफ्तारी हुई. लेकिन इस बीच या गिरफ्तारी के बाद भी उनके घरों पर बुलडोजर की कार्रवाई नहीं की गई.
एक बार फिर तूल पकड़ रहा मामला
अभी कुछ दिनों पहले भी सक्षम पटेल को छोड़कर बाकी दोनों आरोपियों को हाई कोर्ट ने जमानत दे दी. जबकि सक्षम पटेल की जमानत याचिका पर 16 सितंबर को सुनवाई होना बाकी है, जिससे यह मामला एक बार फिर से तूल पकड़ रहा है. आखिर ऐसा क्यों हुआ और बीजेपी आईटी सेल के तीनों आरोपियों कुणाल पांडेय, अभिषेक चौहान उर्फ आनंद और सक्षम पटेल के घरों पर बुलडोजर की कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
पुलिस ने क्या कहा?
इस बारे में वाराणसी के काशी जोन के डीसीपी गौरव बांसवाल ने बताया कि इस मामले में तीन आरोपियों की गिरफ्तारी पिछले वर्ष की गई थी और चार्जशीट पेश करने के दौरान उनके ऊपर गैंगस्टर एक्ट की भी कार्रवाई की गई थी. तीनों आरोपियों में से दो को पिछले हफ्ते हाई कोर्ट से जमानत भी मिल चुकी है. पुलिस की तरफ से कठोरतम कार्रवाई की जा रही है.
क्यों नहीं की गई बुलडोजर की कार्रवाई?
घटना से लेकर गिरफ्तारी के दौरान भी बुलडोजर की कार्रवाई न किए जाने के सवाल पर डीसीपी बंसवाल ने बताया कि उनकी लोकेशन लगातार ट्रेस की जा रही थी और गिरफ्तारी के लिए प्रयास भी किया जा रहा था. गिरफ्तारी होते ही कठोरतम कार्रवाई भी की गई. उन्होंने कहा कि बुलडोजर की कार्रवाई एक सिविल मैटर है जिसमें अवैध निर्माण के खिलाफ प्रशासन के द्वारा कार्रवाई की जाती है. पुलिस के अधिकार क्षेत्र में बुलडोजर जैसी कोई कार्रवाई नहीं है.