अयोध्या की मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर होने वाला उपचुनाव बीजेपी और समाजवादी पार्टी दोनों के लिए ही साख का चुनाव हो गया है. समाजवादी पार्टी जहां इस सीट को जीतकर बीजेपी से भगवान राम की नाराजगी की भावना को और पुख्ता करने में जुटी है तो वहीं दूसरी तरफ लोकसभा चुनाव में अयोध्या सीट पर मिली हार से छटपटाई भाजपा मिल्कीपुर जीत को प्रतिष्ठा का सवाल मान चुकी है. बता दें कि मिल्कीपुर सीट पर उपचुनाव के लिए 5 फरवरी को वोटिंग होगी और 8 को नतीजे आएंगे.
भव्य राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद लोकसभा चुनाव में अयोध्या सीट पर मिली हार ने भाजपा को व्यथित कर दिया था. पूरे देश में अयोध्या की हार की गूंज ने विपक्ष को व्यंगबाण चलाने का अवसर भी दिया. ऐसे में मिल्कीपुर सीट पर होने वाले विधानसभा उपचुनाव में बीजेपी अब कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती. यही वजह है की मिल्कीपुर में जातिगत समीकरण को साधने से लेकर बूथवार जीत सुनिश्चित करने के लिए प्रदेश सरकार के उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक, केशव प्रसाद मौर्य से लेकर कैबिनेट मंत्री स्वतंत्र देव सिंह, जेपीएस राठौर, दयाशंकर सिंह, मयंकेश्वर शरण सिंह सतीश शर्मा को लगाया गया है.
इसी सीट पर समाजवादी पार्टी ने जहां अयोध्या से सांसद अवधेश प्रसाद के बेटे अजीत प्रसाद को मैदान में उतारा है तो वहीं दूसरी तरफ बीजेपी ने अपने प्रत्याशी की घोषणा तो नहीं की है, लेकिन चर्चा कई नामों पर है.
मिल्कीपुर सीट पर प्रत्याशी के दौड़ में गोरखनाथ बाबा सबसे प्रबल दावेदार हैं. 2017 में मिल्कीपुर से विधायक रह चुके गोरखनाथ 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा प्रत्याशी अवधेश प्रसाद से 13000 वोट से हारे थे. ऐसे में गोरखनाथ बाबा की इलाके में राजनीतिक पकड़, और जातिगत खेमेबंदी दावेदारी को मजबूत करती है. लेकिन भाजपा हमेशा नए प्रयोग नए चेहरे को लेकर भी जानी जाती रही है. ऐसे में मिल्कीपुर सीट पर नए चेहरों पर भी बीजेपी दाव लगाने का प्रयोग कर सकती है.
नए चेहरों में पूर्व नौकरशाह उप परिवहन आयुक्त रहे सुरेंद्र रावत का नाम चर्चा में है. पार्टी के संगठन से नए चेहरों में प्रदेश अनुसूचित मोर्चा के कोषाध्यक्ष चंद्रकेश रावत के साथ साथ पूर्व विधायक रामू प्रियदर्शी भी चर्चा में हैं.
इस बार के मिल्कीपुर चुनाव में वोटों का गणित भी बदला है. 2022 के विधानसभा चुनाव में जहां कांग्रेस और बसपा मैदान में थी. इस बार यह दोनों दल लड़ाई से बाहर हैं. 2022 के चुनाव में कांग्रेस और बसपा को मिलकर 17.5 हजार मिले थे और भाजपा 12, 913 वोटों से हार गई थी. ऐसे में बीजेपी और समाजवादी पार्टी दोनों ही कांग्रेस और बसपा की झोली वाले वोट बैंक पर नजर गड़ाए हैं. दोनों ही इस वोट बैंक को अपने पाले में करने में जुटे हैं.
बीजेपी के लिए मिल्कीपुर चुनाव कितना अहम है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि चुनाव की बागडोर खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने संभाल रखी है. लोकसभा चुनाव के बाद से ही मुख्यमंत्री लगातार अयोध्या और मिल्कीपुर का दौरा कर रहे हैं. बीजेपी के साथ-साथ उनके सहयोगी दल के नेता संजय निषाद और ओमप्रकाश राजभर मिल्कीपुर में लगातार जातिगत समीकरण को बांधने में जुटे हैं.
बीजेपी के साथ-साथ समाजवादी पार्टी भी जिस अयोध्या सीट से मिली जीत को पूरे देश में उदाहरण बनाकर बीजेपी पर हमलावर थी उसके लिए मिल्कीपुर का चुनाव अपने माहौल को बड़ा करने का मौका है. समाजवादी पार्टी ने हर सेक्टर और बूथ पर पार्टी कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी दी है. पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक के जिस फॉर्मूले और 'संविधान बचाव' की बयार से सपा ने अयोध्या की लोकसभा सीट जीती थी उसी माहौल और वोट समीकरण के आधार पर मिलकर मिल्कीपुर जीतने का गुणा गणित कर रही है.
समाजवादी पार्टी के साथ-साथ अयोध्या से सांसद अवधेश प्रसाद की भी साख दांव पर है क्योंकि मिल्कीपुर का जातिगत समीकरण जहां अवधेश प्रसाद के अनुकूल है वहीं दूसरी तरफ प्रत्याशी अवधेश प्रसाद के बेटे अजीत प्रसाद हैं. ऐसे में अपनी राजनीतिक सूझबूझ से विरासत बेटे को सौंपने का मिल्कीपुर चुनाव एक मौका होगा.
लोकसभा चुनाव में भाजपा को हराकर समाजवादी पार्टी ने जहां इसे भगवान राम की नाराजगी का नतीजा बताकर देश भर में माहौल बनाया था तो वही 5 फरवरी को होने वाला मिल्कीपुर सीट का चुनाव समाजवादी पार्टी के लिए एक बार फिर माहौल को मजबूत करने का मौका होगा. लेकिन भाजपा भी सपा और कांग्रेस के संविधान बचाओ के फुलाए गुब्बारे की हवा मिल्कीपुर चुनाव में ही निकालने की कोशिश में है.