बाजरा खरीफ सीजन की एक महत्वपूर्ण फसल है. बुवाई के बाद उचित देखभाल बहुत जरूरी है.
कम बारिश के बावजूद आप बाजरे की फसल से अन्य फसलों के मुताबिक, अधिक पैदावार और चारा हासिल कर सकते हैं.
अगर आप चाहें तो कुछ तरीकों को अपनाकर अपने मुरझा रहे पौधों को फिर से एक नई जान दे सकते हैं.
जून के आखिरी दिनों और और जुलाई का पहला सप्ताह बाजरे की बुवाई के लिए सबसे उपयुक्त समय है.
बाजरे की खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली मध्यम से भारी मिट्टी को अधिक उपज के लिए चुना जाना चाहिए.
जिस खेत पर बाजरे की खेती करने जा रहे है, उस जगह पर दीमक और लट का प्रभाव नहीं होना चाहिए.
मिट्टी का पीएच मान 6.5 और 7.5 के बीच होना चाहिए. अच्छे अंकुरण के लिए दोमट मिट्टी और दोमट सघन मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है.
इसके लिए खेत की गहरी जुताई जरूरी है. जुताई के बाद सड़ी हुई खाद को आखिरी थ्रेसिंग से पहले मिट्टी में अच्छी तरह मिला देना चाहिए.
बुवाई के बाद बाजरे की खेती के लिए अधिक सिंचाई करने की आवश्यकता नहीं होती है.
समय पर बारिश नहीं होने पर भी 10-15 दिनों के अंतराल पर बाजरे की सिंचाई करें.
पौधे में जब फूल और दाना आने लगे तो उस स्थित में खेत में नमी का मात्रा कम नहीं होनी चाहिए.
बाजरे की खेती का किसानों को बेहद ध्यान रखना चाहिए क्योंकि इसमें कई तरह के रोग लगते हैं.
जिसमें दीमक, तना मक्खी कीट सफेद लट, मृदु रोमिल आसिता, अर्गट और हरित बाली रोग आदि हैं.
इसके बचाव के लिए किसानों को खेत में बीज शोधन करें और साथ ही लगातार खेत में बाजरा की फसल न लगाएं.