कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का मतलब है, अनुबंध पर खेती.
ये खेती दो तरीके से होती है.
पहले तरीके में अपनी बहुत सारी जमीन यानी खेत को किसी अन्य व्यक्ति को किराये पर देना होता है.
दूसरे तरीके में जमीन भी किसान की और खेती भी वही करे, लेकिन अपने लिए नहीं, बल्कि दूसरे व्यक्ति, फर्म या कंपनी के लिए.
अनुबंध के मुताबिक, किसान द्वारा उपजाई गई विशेष फसल को कॉन्ट्रैक्टर तय कीमत में खरीदता है.
खेती में खाद, बीज से लेकर सिंचाई और मजदूरी आदि सारे खर्च कॉन्ट्रैक्टर के होते हैं.
कॉन्ट्रैक्टर ही किसान को फसल के लिए खेती के तरीके बताता है.
फसल की क्वालिटी, मात्रा और उसकी डिलीवरी का समय खेती से पहले ही तय हो जाता है.
माना जाता है कि कांट्रैक्ट फार्मिंग से खेती अधिक संगठित बनेगी. किसानों को बेहतर भाव मिलेंगे.
हालांकि, इस तरीके की खेती में किसानों को नुकसान होने की भी आशंका जताई गई है.
माना जा रहा है कि इससे बड़े खरीदारों के एकाधिकार को बढ़ावा .कम कीमत देकर किसानों के शोषण करने की संभावनाएं भी बढ़ेंगी.