आज भी भारत में खेती की पारंपरिक विधियां अपनाई जाती हैं.
हालांकि, कई किसान देसी बीजों की जगह भी हाइब्रिड बीजों का इस्तेमाल करने लगे हैं. विशेषज्ञों की मानें तो देसी बीज ही टिकाऊ खेती की नींव होते हैं.
हालांकि, जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों को देखते हुए हाइब्रिड बीज डिजाइन किए जा रहे हैं.
ये पूरी तरह से किसानों के ऊपर निर्भर करता है कि वो किस बीज से बुवाई करते हैं.
दोनों बीजों के बीच का अंतर जानकर किसान आज के समय के हिसाब से खेती कर सकते हैं.
कृषि विशेषज्ञों की मानें तो देसी और हाइब्रिड बीज का इस्तेमाल मिट्टी की जांच के आधार पर करना चाहिए.
हाइब्रिड यानी संकर बीजों को कृतिम रूप से डिजाइन किया जाता है. ये बीज दो या दो अधिक बीज-पौधों के क्रॉस पोलिनेशन से बनाए जाते हैं.
हाइब्रिड यानी संकर बीजों में दो या दो से अधिक बीजों के गुण आ जाते हैं, जिसके चलते ये महंगे भी होते हैं.
इन बीजों में कीट-रोगों के प्रतिरोधी क्षमता होती ही है, साथ ही कुछ हाइब्रिड किस्में मौसम की मार का भी सामना कर लेती हैं.
हाइब्रिड बीज लैब में वैज्ञानिक तकनीक से डिजाइन किए जाते हैं, जिसके चलते उपज की क्वालिटी और स्वाद कम हो जाता है.
बेशक हाइब्रिड बीजों के मुकाबले ओपन पॉलीनेटेड यानी देसी बीजों की पैदावार कम होती है, लेकिन गुणवत्ता के मामले में काफी आगे होते हैं.
इस बीजों में कीट-पतंग और बीमारियों से लड़ने की क्षमता ज्यादा नहीं होती, लेकिन हाइब्रिड फसल के मुकाबले स्वाद बेहतर होता है.