अक्टूबर महीने में किसान आलू की बुवाई शुरू कर देते हैं, कई बार महंगा बीज-खाद लगाने के बाद भी थोड़ी सी लापरवाही से नुकसान उठाना पड़ जाता है.
आलू में लगने वाली कुछ ऐसी बीमारियां हैं, जिनका प्रबंधन किसान पहले ही करके नुकसान से बच सकते हैं.
आलू में लगने वाली एक प्रमुख बीमारी पछेती झुलसा भी है. झुलसा के लक्षण पहचानने आसान होते हैं.
इस रोग का प्रकोप पौधे पर पत्तियों से शुरू होता है. यह 4 से 5 दिनों के अंदर पौधों की सभी हरी पत्तियों को नष्ट कर सकता है.
पत्तियों की निचली सतहों पर सफेद रंग के गोले बन जाते हैं, जो बाद में भूरे और काले हो जाते हैं.
पत्तियों के बीमार होने से आलू के कंदों का आकार छोटा हो जाता है और उत्पादन में कमी आ जाती है.
किसान मेटालेक्सिल और मैनकोज़ेब मिश्रित फफूंदीनाशक की 1.5 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर उसमें बीजों को आधे घंटे डुबोकर उपचारित करने के बाद छाया में सुखा कर बुवाई करें.
जिन्होंने फफूंदनाशक दवा का छिड़काव नहीं किया है, उन सभी को सलाह है कि मैंकोजेब युक्त फफूंदनाशक 0.2 प्रतिशत की दर से यानी दो ग्राम दवा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें.
जिन खेतों में बीमारी के लक्षण दिखने लगे हों उनमें साइमोइक्सेनील मैनकोजेब दवा की 3 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें.