एक वक्त था जब बकरियों को गरीबों की गाय कहा जाता था.
आज गरीबों की वही गाय उनका एटीएम बन चुकी है.
केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा में बकरी पालन की बकायदा ट्रेनिंग दी जाती थी.
आमतौर पर बकरे-बकरी का पालन मीट और दूध के लिए होता है.
हालांकि, कुछ ठंडे और पहाड़ी इलाकों में बकरी महंगे पश्मीना (रेशे) के लिए चांगथांगी और गद्दी नस्ल के बकरे-बकरी भी पाले जाते हैं.
मीट के लिए पाले जाने वाले बकरे वजन के हिसाब से बिकते हैं.
बता दें कि गाय के दूध की तुलना में बकरियों का दूध महंगा मिलता है. इससे पशुपालकों को बढ़िया मुनाफा हो सकता है.