भारत में रेशम की खेती यानी रेशम कीट पालन को काफी प्रोत्साहित किया जा रहा है.
मलबरी सिल्क खेती के तहत शहतूत के पत्तों पर रेशम के कीड़ों को पाला जाता है, जो शहतूत के पत्ते खाकर जीवित रहते हैं.
रेशम के कीड़ों की उम्र सिर्फ 2-3 दिन की होती है, जिनसे कोकून लेने के लिये इन्हें पत्तियों पर डाला जाता है.
रेशम के मादा कीड़े अपने जीवन काल में 200-300 अंडे देती है, जिसमें से अगले 10 दिनों लार्वा निकलता है.
ये लार्वा अपने मुंह से लार निकालता है, जिसमें तरल प्रोटीन मौजूद होता है.
हवा लगने पर ये लार्वा धीरे-धीरे सूखकर धागे का रूप ले लेता है और रेशम के कीड़े इस धागे को अपने चारे ओर लपेट लेते हैं.
रेशम के कीड़ों के ऊपर लिपटे हुये इस धागेनुमा पदार्थ को कोकून कहते हैं, जो रेशम बनाने में काम आता है.
बता दें कि एक एकड़ जमीन पर रेशम की खेती करने पर करीब 500 किग्रा रेशम के कीड़ों का उत्पादन मिलता है.
रेशम के कीड़े से कोकून लेने के बाद कीड़े को गर्म पानी में डालकर नष्ट कर दिया जाता है.
इसके बाद कोकून का 20 डिग्री या इससे कम तापमान पर स्टोर किया जाता है. बाद में इससे धागा बनाकर कपड़ा और रेशम के उद्योगियों को बेच दिया जाता है.