11 October 2024
BY: Ashwin Satyadev
टाटा ग्रुप के पूर्व चेयरमैन और दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा अब इस दुनिया में नहीं रहे. बीते 9 अक्टूबर को उन्होनें मुंबई के ब्रीज कैंडी अस्पताल में अंतिम सांस ली.
रतन टाटा की एक ख्वाहिश थी कि देश में मध्यम वर्गीय परिवार भी कार में सफर कर सके. अपने इस ख्याल को हकीकत की शक्ल देने के लिए उन्होनें हर मुमकिन कोशिश भी की.
10 जनवरी 2008 की बात है. कड़ाके की ठंड से दिल्ली कांप रही थी. लेकिन उस वक्त हर किसी की निगाहें प्रगति मैदान में चल रहे दिल्ली ऑटो एक्सपो पर गड़ी थी.
टाटा मोटर्स के तत्कालीन अध्यक्ष रतन नवल टाटा अपने ड्रीम प्रोजेक्ट के तौर पर दुनिया के सामने सबसे सस्ती कार पेश करने वाले थें.
जब प्रगति मैदान में रतन टाटा ने Tata Nano से पर्दा उठाया तो लोगों की भीड़ से खचाखच भरा टाटा का पवेलियन तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा.
लोगों का भारी हुजूम लखटकिया कार को देखने के लिए उमड़ पड़ा था. कैमरों की फ्लैश लाइट इस बात का सबूत थें कि लोग इस छोटी कार के हर एंगल की तस्वीर को कैमरे में कैद कर लेना चाहते थें.
महज 624 सीसी पेट्रोल इंजन से लैस इस कार की लंबाई 3,099 मिमी, चौड़ाई 1,390 मिमी और उंचाई 1,652 मिमी थी. इसका कुल वजन 600–635 किग्रा था.
खैर वो दिन भी आया जब पहली नैनो कार की डिलीवरी की जानी थी. 17 जुलाई 2009 को पहली नैनो कार की डिलीवरी मुंबई में की गई.
पहली नैनो कार के मालिक थें अशोक रघुनाथ विचारे जो भारतीय कस्टम विभाग में काम करते थें. खुद रतन टाटा ने उन्हें उनकी ड्रीम कार की चाबी सौंपी थी.
बता दें कि, शुरुआत में 2 लाख से ज्यादा लोगों ने Tata Nano की बुकिंग की अर्जी दी थी. जिसमें से 1 लाख लोगों को लॉटरी के माध्यम से चुना गया था. इनमें से पहला नाम अशोक का था.
अशोक जब टाटा नैनो कार को लेकर मुंबई की सड़कों पर उतरे तो देखने वालों की भीड़ लग जाती थी. हर कोई इस लखटकिया कार की एक झलक पाने को बेताब था.
Tata Nano की इस डिलीवरी के साथ ही अशोक का नाम भी हमेशा के लिए टाटा मोटर्स और इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज हो गया है.