31 Jan 2024
फरवरी महीने के पहले दिन आम बजट पेश होने वाला है, जिसपर हर किसी की नजर होती है. लेकिन इसमें कई ऐसे लफ्जों का इस्तेमाल होता है, जिससे इसे समझ पाना मुश्किल हो जाता है. आइये जानते हैं, उन खास लफ्जों का मलतब.
सरकार अपने खर्चों को पूरा करने के लिए टैक्स से आमदनी करती है. यह एक प्रकार का अनिवार्य भुगतान है जिसे हर आदमी सरकार को देता है. यह टैक्स दो प्रकार होते हैं, प्रत्यक्ष कर और अप्रत्यक्ष कर.
वह टैक्स, जिसे आपसे सीधे तौर पर वसूला जाता है, जैसे इनकम टैक्स, कॉरपोरेट टैक्स, प्रॉपर्टी टैक्स आदि.
सीधे जनता से नहीं लिया जाता लेकिन इनका बोझ उसी पर पड़ता है. जैसे-देश में तैयार की गई वस्तुओं पर लगने वाला उत्पाद शुल्क (एक्साइज), आयात या निर्यात किए जाने वाले वस्तुओं पर लगने वाले सीमा शुल्क (कस्टम) आदि.
सेस या उपकर किसी टैक्स के साथ किसी विशेष उद्देश्य के लिए धन इकठ्ठा करने के लिए, कर आधार (tax base) पर ही लगाया जाता है. जैसे स्वच्छ भारत सेस, कृषि कल्याण सेस, स्वच्छ पर्यावरण सेस आदि.
अधिभार या सरचार्ज कर के ऊपर लगने वाला कर है जिसकी गणना कर दायित्व के आधार पर की जाती है. सामान्यतः इसे इनकम टैक्स के ऊपर लगाया जाता है.
भारत में वित्तीय वर्ष की शुरुआत एक अप्रैल से होती है और यह अगले साल के 31 मार्च तक चलता है. इस साल का बजट वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए होगा जो एक अप्रैल 2024 से 31 मार्च 2025 तक के लिए होगा.
सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी एक वित्तीय वर्ष में देश की सीमा के भीतर उत्पादित कुल वस्तुओं और सेवाओं का कुल जोड़ होता है. इसमें बढ़त की दर को ही अर्थव्यवस्था की तरक्की की दर माना जाता है.
आर्थिक असमानता दूर करने के लिए सरकार की ओर से आम लोगों को दिया जाने वाला आर्थिक लाभ सब्सिडी कहा जाता है.
यह एक ऐसी नीति होती है जो सरकार की आय, सार्वजनिक व्यय (रक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा, बिजली, सड़क आदि), टैक्स की दर (प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष), सार्वजनिक ऋण, घाटे की वित्त व्यवस्था से सम्बंधित होती है.
सरकार की कुल सालाना आमदनी के मुकाबले जब खर्च अधिक होता है तो उसे राजकोषीय घाटा कहते हैं. चूंकि बजटरी घाटा सही तरीके से सरकार के ऋण दायित्वों की जानकारी नही देता है, इसलिए राजकोषीय घाटे की व्यवस्था लाई गई.
बजट घाटा की स्थिति तब पैदा होती है जब खर्चे, राजस्व से अधिक हो जाते हैं. इसमें सरकार की कर्ज देनदारी शामिल नहीं होती. बजटरी घाटा = कुल प्राप्ति – कुल व्यय.
यह भारत सरकार का वह कोष है जिसमें सरकार की समस्त राजस्व प्राप्तियां, सरकार द्वारा जारी किये गए ट्रेज़री बिल्स और वसूले गए ऋण आदि को शामिल किया जाता है.
इस फंड में आकस्मिक व्यय को पूरा करने के लिए एक राशि रखी जाती है. इससे व्यय ऐसे मुद्दों पर किया जाता है जिनको टाला नहीं जा सकता है लेकिन बाद में संसद से अनुमति लेकर संचित निधि से रुपया लेकर इसमें डाल दिया जाता है.
इसके अंदर उन खर्चों को रखा जाता है जिससे सरकार की न तो उत्पादन क्षमता का विस्तार होता है और न ही भविष्य के लिए अतिरिक्त आय सृजित होती है. उदाहरण के लिए सरकारी विभागों को चलाने में होने वाला खर्च, कर्ज पर ब्याज की अदायगी आदि.
सरकार के उन खर्चों को पूंजीगत व्यय के अंतर्गत रखा जाता है जिससे सरकार की संपत्तियों में बढ़त होती है, जैसे सड़क, स्कूल, अस्पताल, किसी पुराने भवन की मरम्मत आदि.
उस व्यय को योजनागत व्यय कहा जाता है जिससे उत्पादन परिसंपत्ति (production assets) का निर्माण होता है. यह व्यय विभिन्न आर्थिक कल्याणकारी योजनाओं से सम्बंधित होता है, जैसे स्कूल, सड़क निर्माण आदि.
ऐसा सार्वजनिक व्यय जिससे कोई विकास का काम नहीं होता है, गैर योजनागत व्यय की श्रेणी में गिना जाता है. जैसे रक्षा व्यय, पेंशन, बाढ़ आदि पर किया गया खर्च.