16 FEB 2025
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भारत में फांसी की सजा सबसे कठोर दंड माना जाता है. किसी मुजरिम को फांसी देते वक्त कानून का बेहद सख्ती से पालन किया जाता है.
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लेकिन अगर फांसी के वक्त कैदी की मौत नहीं हुई, तो क्या फिर से उसे फांसी दी जाएगी?
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सबसे पहले यह जान लें कि फांसी देते वक्त कानून का बेहद सख्ती से पालन किया जाता है ताकि किसी प्रकार की कोई गलती न हो.
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सुप्रीम कोर्ट के वकील निपुण सक्सेना बताते हैं कि अगर फांसी के बाद भी कैदी की मौत नहीं होती है तो उसे कुछ देर वैसे ही लटका कर रखा जाता है.
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इसके बाद उसका मेडिकल एग्जामिनेशन कराया जाता है, अगर तब भी सांस चल रही है तो उस वक्त उस व्यक्ति को दोबारा फांसी नहीं दी जाएगी.
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इसलिए CRPC के तहत मौत की सजा को तब तक फांसी पर लटकाए जाने के रूप में परिभाषित किया गया है जब तक व्यक्ति मर न जाए.
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निपुण सक्सेना ने बताया कि फांसी के लिए डेथ वारंट जारी किए जाते हैं जिसमें उस तारीख का उल्लेख होगा जिस दिन फांसी दी जाएगी. अब यदि व्यक्ति की मौत फांसी के वक्त नहीं हुई है तो तुरंत व्यक्ति को चिकित्सा सहायता दी जाएगी.
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उसके बाद जेलर की तरफ से पूरी कार्यवाही रिकॉर्ड कर जिला न्यायाधीश को एक रिपोर्ट सौंपना होगा. इसके बाद, राज्य के जेल मैनुअल नियमों के आधार पर, अदालत द्वारा एक अलग तारीख के लिए नए डेथ वारंट निकाले जाएंगे.
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आमतौर पर डेथ वारंट में फांसी की तारीख के लिए एक महीने का समय निर्धारित होता है. आपको बता दें कि फांसी की सजा से पहले कैदी का वजन लिया जाता है और उतने ही वजन के पुतले को फांसी पर चढ़ाने की प्रैक्टिस की जाती है.
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आपको बता दें कि फांसी देने के लिए एक खास तरह के रस्सा का इस्तेमाल होता है. यह रस्सा बिहार के बक्सर में बनाया जाता है.
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