कई बार पायलट हवा में प्लेन का फ्यूल निकाल देता है, क्या है वजह?

18 Jan 2025

Credit: META

आज के समय में अधिकतर लोग समय बचाने के लिए फ्लाइट से सफर करते हैं. कई बार फ्लाइट कंपनियां ऑफर देकर आम आदमी को भी सफर का मौका देती है.

लेकिन, यात्रा के दौरान कई बार ऐसी  स्थिति भी आ जाती है, जब विमान चालकों को आपातकालीन लैंडिंग करना पड़ता है.

लेकिन क्या आप जानते हैं कि ऐसी स्थिति में पायलट को हवा में उड़ते हुए ही विमान का सारा तेल गिराना पड़ता है, यानी फ्यूल डंप करना होता है.

अगर किसी फ्लाइट की इमरजेंसी लैंडिंग करानी होती है तो सबसे पहले विमान चालक विमान फ्यूल को डंप करते हैं, जिसका मतलब है कि  ईंधन को हवा में गिराया जाता है.

क्योंकि विमान एक खास सीमा तक ही वजन उठाने की क्षमता रखते हैं. लैंडिंग के समय वेट कम होना चाहिए और टेक ऑफ के वक्त ज्यादा.

बड़े विमान लैंडिंग के समय अगर ज्यादा भारी होंगे तो उन्हें खतरा हो सकता है.  इस तरह के बड़े विमानों में करीब 5000 गैलन फ्यूल यानी तीन हाथियों के बराबर फ्यूल होता है.

अगर टेकऑफ के ठीक बाद इमरजेंसी लैंडिंग की स्थिति बनती है तो पायलट को तत्काल प्लेन का वजन कम करना होता है. इसलिए फ्यूल डंप किया जाता है. जिसे विमानन की भाषा में फ्यूल जेटीसन कहते हैं.

विमान के विंग्स में मौजूद एक्स्ट्रा फ्यूल को निकाला जाता है. ताकि वो हवा में गायब हो जाए.

कई बार विमान शहर के ऊपर चक्कर लगाकर फ्यूल खत्म करते हैं. ताकि वजन कम कर सकें.

फ्यूल डंप करने के लिए उचित ऊंचाई 6000 फीट या उससे ऊपर है. इस ऊंचाई पर गिरने वाला फ्यूल भाप बनकर उड़ जाता है. लेकिन सभी विमानों में ये सुविधा नहीं होती है.

बोइंग-737 या Airbus-A320 ऐसे डिजाइन के प्लेन हैं, जो मैक्सिमम टेक ऑफ वेट के साथ ही लैंड करते हैं.

ऐसा इसलिए मुमकिन हो पाता है क्योंकि इनका ढांचा पतला और लंबा होता है. 

जबकि चौड़े प्लेन जैसे 777 या 747 इन्हें लैंडिंग से पहले फ्यूल जेटीसन करना होता है, ताकि वजन को कम कर सके.