गंगाजल की वो 'शक्ति', जो इसे सालों तक सड़ने नहीं देती, वैज्ञानिकों ने बताया

09  Feb 2025

गंगाजल को हिंदू धर्म में पवित्र और विशेष गुणों वाला जल माना जाता है. आमतौर पर अन्य जल स्रोतों का पानी कुछ समय बाद खराब हो जाता है और उसमें बदबू आने लगती है, लेकिन गंगाजल के साथ ऐसा नहीं है.

भारतीय वैज्ञानिकों ने गंगा के पानी की 'रहस्यमयी विशेष शक्ति' के वैज्ञानिक आधार को प्रमाणित किया है, जिसे हिंदू "ब्रह्म द्रव्य" या अमृत तुल्य माना जाता है.

चंडीगढ़ स्थित माइक्रोबियल टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट (IMTECH) के माइक्रोबायोलॉजिस्ट, जिन्होंने गंगा के पानी की विशेष विशेषताओं पर स्टडी की थी. जिसमें पहली बार कई बैक्टीरियोफेज पाए हैं.

गंगाजल में पाए जाने वाले बैक्टीरियोफेज (Bacteriophage) नामक वायरस हानिकारक बैक्टीरिया को नष्ट कर देते हैं. इसे फेज (Phage) भी कहा जाता है. यह इकलौता ऐसा वायरस है, जो इंसानों के लिए फायदेमंद है.

ये फेज पानी में मौजूद हानिकारक सूक्ष्मजीवों (बैक्टीरिया) को खत्म करके उसे लंबे समय तक शुद्ध बनाए रखते हैं. इससे गंगा के पानी के स्व-शुद्धिकरण गुणों का रहस्य सुलझ गया है.

साइंटिस्ट को गंगा के पानी में कई तरह के बैक्टीरियोफेज का पता चला है जिनमें जीवाणुनाशक विशेषताएं हैं. ये प्राकृतिक रूप से पाए जाते हैं और जीवाणु संक्रमण को कंट्रोल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

एक रिपोर्ट में IMTECH CSIR के सीनियर प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ. षणमुगम मायिलराज गंगा के पानी में मौजूद कई खास DNA वायरल के बारे में बताया है.

साइंटिस्ट का कहना है, "गंगा के पानी ताजे पानी की गाद मेटाजीनोम-वायरोम के एनालिसिस से पता चला है कि गंगा न केवल नए वायरोम हैं, बल्कि इसमें ऐसे डबल स्ट्रैंड वाले DNA वायरस भी शामिल हैं, जिसके बारे में बहुत कम जानकारी है."

डॉ. मायिलराज ने कहा कि गंगा के पानी में ये बैक्टीरियोफेज कुछ क्लिनिकल आइसोलेट्स या वायरल स्ट्रेन के खिलाफ एक्टिव हैं और इनका इस्तेमाल मल्टी-ड्रग रेसिस्टेंट या एमडीआर संक्रमण के खिलाफ किया जा सकता है.

उनकी टीम ने 20-25 दिलचस्प वायरस की पहचान की है, जिनका इस्तेमाल तपेदिक, टाइफाइड, निमोनिया, हैजा, डायरिया जैसी बीमारियों के इलाज में हो सकता है.

अब तक की स्टडी से पता चला है कि गंगा के पानी में कई प्रकार के जीवाणु समूह जैसे कि ऑसिलेटोरीफाइक्यूडे, फ्लेवोबैक्टीरिया, स्फिंगोबैक्टीरिया, ए-प्रोटियोबैक्टीरिया, बीटा-प्रोटियोबैक्टीरिया.

इसके अलावा गंगा के पानी की गाद में बीटा-प्रोटियोबैक्टीरिया, ?-प्रोटियोबैक्टीरिया, ए-प्रोटियोबैक्टीरिया, क्लोस्ट्रीडिया, एक्टिनोबैक्टीरिया, स्फिंगोबैक्टीरिया और डेल्टाप्रोटियोबैक्टीरिया शामिल हैं.

IMTECH के अलावा, राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (NEERI) नागपुर, राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान, भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान और केंद्रीय औषधीय एवं सुगंधित पौधा संस्थान इस प्रोजेक्ट का हिस्सा रहे.