141 साल पुराना है भारत में आरक्षण का इतिहास, जानें इसके पीछे की कहानी

10 Nov 2023

देश में हाशिये पर खड़े वर्गों को अन्याय से बचाने के लिए समाज में आरक्षण देने का प्रावधान रखा गया है. 

भारत में आरक्षण का इतिहास

देश के पिछड़े वर्ग को समान रूप से अधिकार, रोजगार और शिक्षा दिलाने के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया है. 

भारत में आरक्षण की शुरुआत आज से 141 साल पहले हुई थी. 19वीं सदी के समाज सेवक और लेखक ज्योतिराव फुले ने मुफ्त शिक्षा और सरकारी नौकरियों में सभी के लिए आरक्षण की मांग थी. 

ज्योतिबा फुले शिवाजी को अपनी प्रेरणा मानते थे. उन्होंने ब्राह्मणवाद का विरोध करते हुए पहली बार बिना किसी पुरोहित के विवाह संस्कार शुरू करवाया था और बाद में इसे बॉम्बे हाईकोर्ट से मान्यता भी दिलवाई थी. 

ज्योतिबा की वजह से ही पिछड़े और अछूत माने जाने वाले वर्ग की भलाई के लिए 1882 में हंटर आयोग का गठन किया गया था.

1891 में त्रावणकोर के सांमती रियासत में मूल निवासियों की अनदेखी करके विदेशी लोगों की नौकरी में भर्ती करने के खिलाफ विरोध किया गया था और सरकारी नौकरी में आरक्षण की मांग उठी थी. 

1901 में महाराष्ट्र के कोल्हापुर में शाहू महाराज ने आरक्षण की शुरुआत की थी. समाज के वंचित समुदाय के लिए नौकरियों में 50 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की गई थी. 

1908 में अंग्रेजों ने भी प्रशासन में कम हिस्सेदारी वाली जातियों को आरक्षण देना शुरू कर दिया था. 

1909 में भारत सरकार अधिनियम के तहत आरक्षण का प्रावधान किया गया था. इसके अलावा अलग-अलग जाति और धर्म के आधार पर कम्यूनल अवार्ड की भी शुरुआत की गई थी.