प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लक्षद्वीप दौरे के बाद यह जगह काफी ट्रेंड कर रही है. पीएम ने अपने ट्विटर हैंडल पर भारत के इस टापू की खूबसूरती को बयां किया है.
लेकिन पीएम के इस ट्वीट पर टूरिस्ट प्लेस मालदीव के कुछ मंत्रियों ने आपत्तिजनक बयान दे दिए, जिसके बाद ट्विटर पर #boycott मालदीव ट्रेंड करने लगा.
भारत का केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप दिखने में काफी खूबसूरत है, आज यहां एक नागरिक के लिए हर सुविधा उपलब्ध है. बच्चों के लिए स्कूल और युवाओं के लिए कॉलेज हैं.
लेकिन क्या आप जानते हैं कि लक्षद्वीप में पहला स्कूल कब खुला था और इसके पीछे कितनी मशक्कते करनी पड़ी थीं? आइए जानते हैं.
शुरुआती दौर में लक्षद्वीप की मस्जिदों में कुरान पढ़ाई जाती थी. ना यहां कोई स्कूल था और ना ही किताबें.
सालों बाद साल 1888 के दौरान, शिक्षा प्रदान करने के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित शिक्षकों को मस्जिद स्कूलों से जोड़ा गया था. इसके बाद 1895 में मदरसों से जुड़े स्कूलों में प्रारंभिक मलयालम पढ़ने और बोलने वाले उपलब्ध कराए गए.
लगभग 20 साल बाद यानी कि साल 1904 में केरल के कासरगोड के मप्पिला शिक्षक को लक्षद्वीप भेजा गया जिनके जरिये 15 जनवरी को लक्षद्वीप के अमीनी में पहला सरकारी स्कूल खोला गया.
इस स्कूल में भाषाएं और अंकगणित (Arithmetic) विषय ही पढ़ाए जाते थे. इसके बाद धीरे-धीरे अन्य जगहों पर स्कूल खोले जाने लगे.
साल 1956 में लक्षद्वीप का साक्षरता दर (Literacy Rate) सिर्फ 15.23 प्रतिशत था. समय के साथ-साथ आज यह 87.52 प्रतिशत तक पहुंच चुका है.