भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के अलावा कई देश अपने एस्ट्रोनॉट को यान में अंतरिक्ष की यात्रा पर भेजते हैं.
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अंतरिक्ष में ना हवा होती है, ना पानी और ना ही ऑक्सीजन. वह अपना खाना स्पेस में लेकर जाते हैं.
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लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि वह अपना मल-मूत्र कहां फेंकते होंगे? आइए जानते हैं-
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अंतरिक्ष में जाने वाला पहला मिशन नासा के एस्ट्रोनॉट एलन शेफर्ड ने पूरा किया था. यह मिशन सिर्फ 15 मिनट का ही था.
मिशन सिर्फ 15 मिनट का इसीलिए मल-मूत्र का कोई इंतजाम नहीं किया गया था लेकिन लॉचिंग में दरी हो गई और स्पूस में एलन शेफर्ड को स्पेससूट में ही टॉयलेट करना पड़ा. जिस कारण वह पूरे मिशन मं भीगे रहे.
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कुछ सालों के बाद अंतरिक्ष में टॉयलेट करने के लिए कंडोम की तरह दिखने वाला पाउच बनाया गया. हालांकि, यह सफल नहीं हुआ क्योंकि अंतरिक्ष में यह हर बार में ही फट जाता था.
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अपोलो मिशन के दौरान पेशाब के लिए बनाए गए पाउच को एक वॉल्व से जोड़ दिया गया. वॉल्व को दबाते ही यूरिन स्पेस में चला जाता था. इसके अलावा पॉटी करने के लिए यात्री अपने पीछे बैग बांधते थे.
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1980 में नासा ने महिलाओं को अंतरिक्ष में भेजने का फैसला लिया. इस दौरान अंतरिक्ष में पेशाब करने के लिए डायपर बनाया गया जिसे पुरुष भी इस्तेमाल करते थे.
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इस डायपर का उपयोग पहली अमेरिकी महिला अंतरिक्ष यात्री सैली क्रस्टेन राइड ने 1983 में किया था. इसके बाद अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने जीरो-ग्रैविटी टॉयलेट बनाया.
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इसके लिए एस्ट्रोनॉट हाथ में एक विशेष तरीके के ग्लव्स पहनते हैं फिर उसकी मदद से मल को खींच कर जीरो-ग्रैविटी टॉयलेट में डालते हैं. यह काफी मुश्किल काम था.
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अब इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर जीरो ग्रैविटी टॉयलेट का ही उपयोग होता है. जमा पेशाब को वाटर रिसाइक्लिंग यूनिट से साफ करके पीने योग्य पानी में बदल दिया जाता है.
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