गाय के गोबर, हल्दी और फूल-पत्तों से तैयार होता है कलर, जानें क्या है मधुबनी पेंटिंग की खासियत

23 Feb 2025

Credit: META

भारत का इतिहास संगीत और कलाओं से भरा हुआ है. इनके बिना भारतीय संस्कृति की कल्पना नहीं की जा सकती है.

इसी अनोखी और पुरानी कला में से एक है मधुबनी पेंटिंग. बिहार और नेपाल के पूर्वांचल इलाके की पहचान है मधुबनी पेंटिंग.

बिहार के दरभंगा, सहरसा, मुजफ्फरपुर और पूर्णिया और नेपाल के कुछ हिस्सों में ये पेंटिंग  मुख्य रूप से देखने को मिलेगी. इन पेंटिंग में चटक रंगों का इस्तेमाल होता है.

पहले ये चित्रकला रंगोली के रूप में ही देखने को मिलती थी, ज्यादातर यह कच्चे मकानों के ऊपर या दिवाली या किसी खास पर्व-त्योहार पर बनाए जाते थे. 

जैसे-जैसे समय बीतता गया पेंटिंग कच्ची दीवारों से कपड़ों और कागजों पर दिखने लगी. जिससे इस पेंटिंग को देश के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली. 

आज के समय में शायद ही कोई ऐसा फेस्ट/मेला हो जहां आपको मिथिला पेंटिंग या मधुबनी पेंटिंग देखने को न मिले. फरीदाबाद में लगने वाले सूरजकुंड मेला में आप इसकी खास प्रदर्शनी देख सकते हैं.

मधुबनी से निकलकर आज अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्धि पा चुकी इस पेंटिंग में साथ तौर पर प्रकृति, देवी-देवताओं, विवाह और जन्म के चक्र जैसी कलाकृति को कलाकार बनाते हैं. 

मधुबनी पेंटिंग में मुख्य तौर पर भगवान कृष्ण, भगवान राम और शिव-पार्वती की कलाकारी देखने को मिलती है. 

मधुबनी के लोग बताते हैं कि इस पेंटिंग की शुरुआत रामायण युग से हुई थी, कहा-जाता है कि भगवान राम और सीता की शादी के दौरान मिथिला की महिलाओं को घरों की दीवारों और आंगनों को पेंटिंग से सजाने को कहा गया था.

इसके साथ में ये भी कहा था कि इन पेंटिंग्स में मिथिला की संस्कृति दिखनी चाहिए ताकि अयोध्या से जो लोग आए उन्हें पता चल सके कि मिथिला की संस्कृति कितनी महान है. 

1934 में मिथिलांचल में एक बड़ा भूकंप आया, जिससे काफी नुकसान हुआ, इस त्रासदी को देखने एक ब्रिटिश अधिकारी विलियम आर्चर पहुंचे थे, जिन्होंने यहां की दीवारों पर मधुबनी पेंटिंग देखी और तस्वीरें खींची.

आर्चर ने 1949 में मार्ग नाम का एक आर्टिकल लिखा, जिसमें उन्होंने मधुबनी पेंटिंग की तुलना मिरो और पिकासो से की, यहीं से इस पेंटिंग को ग्लोबल पहचान मिली.   

मधुबनी पेंटिंग को बनाने का तरीका बिल्कुल अनोखा है. कलाकार इसे माचिस की तिल्ली और बांस की कलम के सहारे बनाया जाता है. इसके साथ ही जिस कागज पर मधुबनी पेंटिंग बनाई जाती है वे कागज भी हाथ से बनाकर तैयार किया जाता है.

मधुबनी पेंटिंग में इस्तेमाल होने वाले रंग, पौधों और प्राकृतिक चीज़ों से तैयार किए जाते हैं. इन रंगों को घरेलू तरीके से बनाया जाता है. काला रंग - गाय के गोबर में कालिख मिलाकर बनाया जाता है.

हल्दी से पीला रंग, नील से नीला रंग, फूलों के रस या लाल चंदन से लाल रंग, पत्तों से हरा रंग, चावल के आटे से सफेद रंग  बनाया जाता है. पलाश के फूलों से नारंगी रंग बनाया जाता है.