22 Dec 2024
रामानुजन ने मात्र 12 साल की उम्र में गणित के कई टफ सिद्धांत सीख लिए थे. उन्होंने बिना कोचिंग त्रिकोणमिति में महारत हासिल कर ली थी और कई प्रमेय भी विकसित की.
इंग्लैंड के गणितज्ञ जी.एच. हार्डी ने उनके कार्यों की प्रशंसा की और उन्हें कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय बुलाया. यहाँ उन्होंने 5 वर्षों में गणित में कई महत्वपूर्ण योगदान दिए.
1729 को "रामानुजन संख्या" कहा जाता है. यह वह सबसे छोटी संख्या है जिसे दो अलग-अलग तरीकों से दो घनों के योग के रूप में लिखा जा सकता है.
आर्थिक तंगी के कारण उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी, लेकिन गणित के प्रति उनका जुनून कभी कम नहीं हुआ. उन्होंने स्वाध्ययन से गणित में महारत हासिल की.
उनकी तीन प्रमुख नोटबुक्स और "लॉस्ट नोटबुक" में हजारों अनोखे गणितीय सूत्र और प्रमेय दर्ज हैं. ये आज भी गणितीय अनुसंधान का आधार हैं.
रामानुजन का मानना था कि उनके गणितीय विचार देवी नमगिरी की कृपा से आते हैं. उन्होंने गणित को एक दिव्य साधना के रूप में देखा.
रामानुजन ने π की गणना के लिए कई अद्वितीय और तेज तरीकों का विकास किया. उनके सूत्र आज भी कंप्यूटरों द्वारा π के अरबों दशमलव अंकों की गणना में उपयोग किए जाते हैं.
इंग्लैंड की ठंडी जलवायु और अपर्याप्त भोजन के कारण उनका स्वास्थ्य खराब हो गया. वे मात्र 32 साल की उम्र टीबी रोग की वजह से निधन हो गया था.
उन्होंने गणितीय समीकरणों को अनंत श्रृंखला और जटिल संख्याओं के माध्यम से हल किया. उनका मॉक थीटा फंक्शन आधुनिक गणित का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.
भारत में हर वर्ष उनकी जयंती (22 दिसंबर) को राष्ट्रीय गणित दिवस के रूप में मनाया जाता है. उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि विपरीत परिस्थितियों में भी लगन और प्रतिभा के बल पर महानता हासिल की जा सकती है