aajtak.in
पुरानी संसद की कहानी हिंदुस्तान की स्वतंत्रता से पहले शुरू हो गई थी.
संसद भवन का निर्माण 06 साल में हुआ था और इसे बनाने में 85 लाख रुपये खर्च हुए थे. उस वक्त संसद भवन का नाम काउंसिल हाउस रखा गया था.
संसद भवन का डिजाइन हरबर्ट बेकर ने बनाया था और उन्होंने 18 जनवरी 1927 में लॉर्ड इरविन को सोने की चाभी सौंपी थी. उस चाभी से पहली बार संसद भवन का दरवाजा खोला गया था.
उस वक्त कांग्रेस अध्यक्ष मोतीलाल नेहरू समेत कांग्रेस के कई नेता और पटियाला के महाराजा जैसे तमाम दिग्गज वहां मौजूद थे.
भारत के आजाद होने के बाद 15 अगस्त 1947 की आधी रात को जवहारलाल नेहरू ने ऐतिहासिक भाषण दिया था.
लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद इंदिरा गांधी ने 19 जनवरी 1966 को पीएम पद संभाला. इसके बाद संसद ने इंदिरा गांधी के भाषणों को सुना.
संसद भवन ने इमरजेंसी के दौर को भी देखा. इस दौर की तमाम कहानी-किस्से संसद भवन के इतिहास में दर्ज हो गए.
इसी दौर में संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी और पंथनिरपेक्ष शब्द जुड़े और संसद के जरिए देश ने जाना कि देश लिखिततौर पर सेक्युलर है.
इमरजेंसी के बाद संसद भवन ने इंदिरा की गिरफ्तारी भी देखी और बाद में उनका लौटना भी देखा.
इंदिरा के बाद संसद भवन ने राजीव गांधी को पीएम बनते देखा. उस वक्त बीजेपी के दो सांसद ही थे.
संसद भवन इस चीज का भी गवाह बना जब राजीव गांधी ने शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट का फैसला बदल दिया.
इसी संसद भवन ने देखा अटल बिहारी वाजपेयी का ऐतिहासिक भाषण- 'मगर ये देश रहना चाहिए' जिसका जिक्र आज भी लोग करते हैं.
इस संसद भवन ने 2001 में देखा है अपने ऊपर हमला. संसद भवन ने कई बार हंगामा भी देखा.
2017 में जब GST लागू हुआ तब भी यही संसद भवन उसका गवाह बना.
विशेष सत्र में पुरानी संसद के विदाई भाषण में 19 सितंबर 2023 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटने और तीन तलाक जैसे मुद्दों का जिक्र किया.
पुराने संसद भवन में कई बार नेता भावुक हुए तो कई बार हंसी-मजाक भी इसी संसद भवन ने ही देखा.
अब नए संसद भवन में भी कई तरह के किस्से और कहानियां लिखी जाएंगी.