22 Feb 2024
किसान फिर सड़कों पर हैं, पंजाब और हरियाणा के किसान दिल्ली के अलग-अलग बॉर्डर्स पर एमएसपी पर कानूनी गारंटी की मांग को लेकर धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं.
सरकार का प्रस्ताव था कि पांच साल तक दाल, मक्का और कपास को एमएसपी पर खरीदा जाएगा. लेकिन किसानों ने इसे नामंजूर कर दिया.
किसान संगठनों का कहना है कि एमएसपी पर कानूनी गारंटी से कम कुछ मंजूर नहीं है. इस बीच लोग सर्च इंजन गूगल पर एमएसपी के बारे में सर्च कर रहे हैं.आइये जानते हैं क्या है एमएसपी?
MSP (Minimum Support Price) यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य, वह न्यूनतम दर है जिस पर सरकारी एजेंसियां किसानों से फसलें खरीदती हैं. यह बाजार के उतार-चढ़ाव के बीच यह सुनिश्चित करती है कि किसानों को उनकी फसलों की उचित कीमत मिल सके.
फिलहाल यह एक नीति है, कानून नहीं. यानी सरकार जब चाहे इसे बंद कर सकती है या रोक सकती है. इसलिए किसान एमएसपी की लीगल गांरटी की मांग कर रहे हैं.
दूसरा- ज्यादातर किसानों की फसल की खरीद एमएसपी पर होती ही नहीं है. किसानों को अपनी फसल एमएसपी से कम कीमत पर बेचनी पड़ती है. ऐसे में किसानों के पास किसी अदालत में जाकर अपना हक मांगने का अधिकार भी नहीं है.
अभी सरकार जिन 23 फसलों के लिए एमएसपी तय करती है, उनमें 7 अनाज, 5 दाल, 7 तिलहन और 4 कमर्शियल फसलें- गन्ना, कपास, खोपरा और जूट शामिल हैं.
सरकार हर साल इन फसलों के लिए एमएसपी तय करती है. केंद्र सरकार की एजेंसी कमीशन फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइसेस (CACP) एमएसपी की सिफारिश करती है और उसके बाद एमएसपी तय होती है.
1960 के दशक में जब देश में अनाज का भारी संकट पैदा हो गया था, तब एमएसपी की व्यवस्था लागू की गई थी. धान पर पहली एमएसपी 1964-65 में दी गई थी.
तब एक क्विंटल धान पर 39 रुपये तक की एमएसपी तय की गई थी. 1966-67 से गेहूं पर एमएसपी दी जा रही है.