19 Jan 2025
साधुओं द्वारा लंबी जटाएं रखना न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके पीछे कुछ वैज्ञानिक कारण भी हो होते हैं.
साधु-संतों की जटाएं उनके जीवन के त्याग, तपस्या, और प्राकृतिक जीवन शैली का प्रतीक हैं. आइए इसे धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों दृष्टिकोण से समझते हैं.
साधु लंबी जटाएं इसलिए रखते हैं क्योंकि यह सांसारिक इच्छाओं और मोह-माया से दूर रहने का प्रतीक है.
(फाइल फोटोः बंदीप सिंह)
भगवान शिव को "जटाधारी" कहा जाता है. साधु शिव को अपना आदर्श मानते हैं और उनकी जीवनशैली का अनुसरण करते हुए जटाएं रखते हैं.
(फाइल फोटोः बंदीप सिंह)
साधुओं का मानना है कि जटाएं उनके लंबे समय तक ध्यान और साधना की निशानी हैं. यह उनके तपस्वी जीवन का प्रतीक है.
(फाइल फोटोः बंदीप सिंह)
यह माना जाता है कि जटाएं ब्रह्मांडीय ऊर्जा को आत्मसात करने का माध्यम होती हैं, जो साधु को ध्यान और आध्यात्मिक अभ्यास में सहायता करती हैं.
(फाइल फोटोः बंदीप सिंह)
लंबे बाल या जटाएं सिर के चारों ओर एक प्राकृतिक परत बनाती हैं, जो सिर की गर्मी और ऊर्जा को बनाए रखने में मदद करती हैं. इससे साधुओं को ठंडे और गर्म वातावरण में संतुलन बनाए रखने में मदद मिलती है.
जटाएं सिर के लिए एक प्राकृतिक इन्सुलेशन का काम करती हैं. रेगिस्तान, जंगल या पहाड़ जैसे कठिन वातावरण में, यह बाल सिर को धूप, ठंड, और धूल से बचाते हैं.
(फाइल फोटोः बंदीप सिंह)
सिर के बाल तंत्रिका तंत्र से जुड़े होते हैं. लंबे बाल खोपड़ी की नसों को स्थिरता और शांतता प्रदान कर सकते हैं, जिससे ध्यान और मानसिक शांति को बढ़ावा मिलता है.
(फाइल फोटोः बंदीप सिंह)
जटाएं रखने से बालों की जड़ों पर खिंचाव होता है, जो सिर की रक्त परिसंचरण (ब्लड सर्कुलेशन) को बेहतर बना सकता है.
साधु अपनी जटाओं को काटते या संवारते नहीं हैं, जिससे वे प्रकृति के साथ एकीकृत रहते हैं. यह प्राकृतिक जीवनशैली के प्रति उनकी निष्ठा को दर्शाता है.
(फाइल फोटोः बंदीप सिंह)