05 Sep 2024
हम जब थिएटर में फिल्म देखने जाते हैं तो अक्सर वहां बैठे स्वादिष्ट पॉपकॉर्न खाने का मन करता है. लोग हाथों में पॉपकॉर्न के टब लिए सीटों पर अडजस्ट होते नजर आते हैं.
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अब सवाल यह उठता है कि जब दुनिया में इतना कुछ खाने को है, ऐसे में थिएटरों में फिल्म देखने के दौरान पॉपकॉर्न खाने का यह कल्चर आया कहां से?
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1920 तक अमेरिका में सड़कों के किनारे, पार्क, ईवेंट, बार समेत हर जगह लोग पॉपकॉर्न खरीदकर खाने लगे. ऐसी कोई जगह नहीं थीं, जहां पॉपकॉर्न नहीं खाया जा रहा हो, हालांकि अभी तक पॉपकॉर्न ने थिएटर का दरवाजा नहीं खटखटाया था.
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इस वक्त तक थिएटर में कहीं भी स्नैक के तौर पर पॉपकॉर्न नहीं मिलता था. फिर 1920 के दौरान निकेलोडियन ने ऐसी चीज बनाई जिसकी मदद से हम घर के अंदर कहीं भी मोशन पिक्चर देख सकते थे जिसे (Indoor Exhibition Space) कहते हैं.
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लोगों को यह काफी पसंद आया और धीरे-धीरे प्रचलित होने लगा, जिसके चलते थिएटर के बिजनेस पर मंदी छाने लगी. कॉम्पिटिशन को देखते हुए मूवी थिएटर के मालिक ने थिएटर को नया रूप देने का सोचा जो लोगों के घरों से बेहतर हो.
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कुछ समय में ही मूवी थिएटर को काफी आलीशान बना दिया गया ताकि लोग घर में प्रोजेक्शन से फिल्म देखने के बजाए मूवी थिएटर का एक्सपीरिएंस पसंद करें.
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आम दिखने वाले थिएटर में बड़ी-बड़ी लॉबी, झूमर, डिकोरेशन का सामान नजर आने लगा.
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इस दौरान थिएटर को काफी अच्छा खासा मुनाफा हो रहा था लेकिन 1929 में अमेरिका में आर्थिक मंदी का ऐसा मोड़ आया कि हंसते-खेलते मुनाफा कमाते थिएटर में ताले लगने शुरू हो गए. लोगों की तालियों से गूंज रहे थिएटर शांत पड़ गए.
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दरअसल, पॉपकॉर्न स्वादिष्ट होने के साथ-साथ काफी सस्ता भी था. जो भी थिएटर में जाता था वे स्नैक्स में खाने के लिए थिएटर के बाहर से प़ॉपकॉर्न खरीदता और अपने कपड़ों में छुपाकर ले जाता था.
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R.J Mekkena वो शख्स है, जिनकी बदौलत ही आज हमें थिएटर में बैठे-बैठे पॉपकॉर्न का स्वाद लेने को मिलता है.
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Mekkena ने पॉपकॉर्न की रेहड़ी को थिएटर के अंदर लगाना शुरू किया. यह चीज लोगों को बहुत पसंद आईऔर उनका दिन प्रतिदिन मुनाफा बढ़ता गया.
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आज थिएटरों में पॉपकॉर्न के बिना मूवी देखना अधूरा लगता है. गुजरते वक्त के साथ डिमांड इतनी बढ़ी कि धीरे-धीरे पॉपकॉर्न के दाम बढ़ने लग गए लेकिन लोगों ने इन्हें खाना नहीं छोड़ा.
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