20 June 2024
Credit: Freepik
खुद से बात करना कोई नई या बड़ी बात नहीं है लेकिन आप अपने आप से क्या बात करते हैं, ये ध्यान देने वाली बात है. आइये जानते हैं.
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अपने दिमाग में कहानियां गढ़ना, खुद से बातें करना न केवल बच्चों तक सीमित है बल्कि बड़े लोग भी ऐसा खूब करते हैं.
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खुद से बात करना एकदम नॉर्मल है लेकिन आपको इसके पॉजिटिव और नेगेटिव दोनों प्रभावों के बारे में पता होना चाहिए.
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खुद से बात करना यानी सेल्फ टॉक सामान्य है लेकिन ये हमारी मानसिक स्थिति के बारे में काफी कुछ बता सकती है.
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सेल्फ टॉक आमतौर पर अकेलेपन और सामाजिक अलगाव की वजह से बढ़ती है. आइये जानते हैं, सेल्फ टॉक की क्या-क्या वजह हो सकती हैं.
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खुद से बात करना बच्चों में बेहद कॉमन है. हालांकि, एक रिसर्च के मुताबिक, क्रिएटिव लोग और अपनी भावनाओं के प्रति अधिक जागरूक लोग सेल्फ टॉक ज्यादा करते हैं.
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किसी बहुत महत्वपूर्ण या बड़ी चीज़ से पहले लोग आमतौर पर अपनी चिंता के स्तर को कम करने और काम में बेहतर प्रदर्शन के लिए सेल्फ टॉक करते हैं.
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जिन लोगों के सोशल कनेक्शन कम होते हैं या अपनेपन की भावना में कमी होती है, वो लोग इस गैप को भरने के लिए सेल्फ टॉक करते हैं.
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हालांकि, ज्यादा अकेलापन अत्यधिक नकारात्मक सेल्फ टॉक को जन्म दे सकता है. फिर इससे आसीडी और एंग्जाइटी जैसी स्थितियों का खतरा बढ़ सकता है.
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स्टडी के मुताबिक, जो बच्चे कुछ बड़ा करने से पहले सेल्फ टॉक करते हैं, वो बेहतर प्रदर्शन करते हैं और अच्छे नंबर पाते हैं.
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सेल्फ टॉक करने वाले लोगों को नए कौशल सीखने में मदद मिल सकती है. खासतौर से वो कौशल जिनमें ताकत और शक्ति की जरूरत होती है.
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अपने आप से सकारात्मक बातचीत करने से आपका आत्म-सम्मान बढ़ सकता है और रोजमर्रा की जिंदगी में चिंता को शांत करने में भी मदद मिल सकती है.
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