07 Oct 2024
वृंदावन के प्रेमानंद महाराज से किसी में पूछा कि शुद्ध रहन-सहन के लिए किसी व्यक्ति को क्या करना चाहिए. इस पर आइए जानते हैं उन्होंने क्या कहा.
प्रेमानंद महाराज ने कहा कि हमें मन शुद्ध रखने की तरफ ध्यान देना चाहिए, तन तो कभी शुद्ध हो ही नहीं सकता.
प्रेमानंद महाराज ने उदाहरण देते हुए कहा कि हम एक रेशम की थैली लाएं और उसमें शौच भरकर पैक कर दें. ऊपर से उसे शुद्ध जल से धो दें. ये सारी क्रिया आपके सामने की गई हो.
तो क्या आप उसे छुएंगे? उसे ऊपर से कितना भी धोएं आपको पता होगा कि यह अपवित्र है. आपके मन में इसके प्रति घृणा रहेगी और इसे छूने के बाद आप नहाने की सोचेंगे.
हमारे शरीर के अंदर भी यही है. हमारी चमड़ी के नीचे मल-मूत्र की थैलियां हैं. ऊपर से चमड़ी को धोकर या नहाकर आप खुद को साफ महसूस कर सकते हैं.
लेकिन शरीर कभी भी पवित्र नहीं हो सकता है. केवल बुद्धि को पवित्र करने के लिए माना जाता है कि हम नहा-धोकर पवित्र हो गए हैं जबकि ऐसा नहीं होता है.
अगर हमारा मन पवित्र है तो सबकुछ पवित्र है और अगर हमारा मन पवित्र नहीं है तो गंगा में खड़ा व्यक्ति भी अपवित्र है.
उन्होंने कहा कि शरीर कभी भी पवित्र नहीं हो सकता है. ऐसे में सुबह उठकर नहाने -धोने से सिर्फ बुद्धि को पवित्र किया जाता है. शरीर को कभी पवित्र नहीं किया जा सकता है.
उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति भगवान हरि का ध्यान करता है वह अंदर और बाहर दोनों से ही पवित्र हो जाता है इसके लिए आपको पवित्र होने या ना होने की कोई जरूरत नहीं है.