मशहूर शायर अब्बास ताबिश का जन्म 15 जून 1961 को लाहौर पाकिस्तान में हुआ. वे मुशायरों में लोकप्रिय हैं. उर्दू अदब की दुनिया में अब्बास ताबिश को खूब शोहरत हासिल है.
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शायद किसी बला का था साया दरख्त पर चिड़ियों ने रात शोर मचाया दरख्त पर अब के बहार आई है शायद गलत जगह जो जख्म दिल पे आना था आया दरख्त पर.
हमने चुप रहके जो एक साथ बिताया हुआ है वो जमाना मेरी आवाज में आया हुआ है मैं उसे देख के लौटा हूं तो क्या देखता हूं शहर का शहर मुझे देखने आया हुआ है.
न तुझ से है न गिला आसमान से होगा तेरी जुदाई का झगड़ा जहान से होगा अगर यूं ही मुझे रखा गया अकेले में बरामद और कोई उस मकान से होगा.
याद कर करके उसे वक्त गुजारा जाए किसको फुर्सत है वहां कौन दोबारा जाए शक सा होता है हर इक पे कि कहीं तू ही न हो अब तेरे नाम से किस किसको पुकारा जाए.
मेरी तन्हाई बढ़ाते हैं चले जाते हैं हंस तालाब पे आते हैं चले जाते हैं इसलिए अब मैं किसी को नहीं जाने देता जो मुझे छोड़ के जाते हैं चले जाते हैं.
पानी आंख में भरकर लाया जा सकता है अब भी जलता शहर बचाया जा सकता है मुझ गुमनाम से पूछते हैं फरहाद ओ मजनूं इश्क में कितना नाम कमाया जा सकता है.
सांस के शोर को झंकार न समझा जाए हमको अंदर से गिरफ्तार न समझा जाए उसको रस्ते से हटाने का ये मतलब तो नहीं किसी दीवार को दीवार न समझा जाए.
शेर लिखने का फायदा क्या है उससे कहने को अब रहा क्या है पहले से तयशुदा मोहब्बत में तू बता तेरा मशवरा क्या है.