मगर सब जानते हैं कैसी शोहरत कौन रखता है.. ऐतबार साजिद के चुनिंदा शेर

23 Dec 2023

By अतुल कुशवाह

ऐतबार साजिद का जन्म 1 जुलाई 1948 को पाकिस्तान के मुल्तान में हुआ था. उनकी शायरी लोग बेहद पसंद करते हैं. उनकी गजलों में बेहद आसान तरीके से दिल की बात व्यक्त होती है. 

शायर ऐतबार साजिद

Photo: facebook

मेरा है कौन दुश्मन मेरी चाहत कौन रखता है इसी पर सोचते रहने की फुर्सत कौन रखता है हमारे शहर की रौनक है कुछ मशहूर लोगों से मगर सब जानते हैं कैसी शोहरत कौन रखता है.

जाने किस चाह के किस प्यार के गुन गाते हो रात दिन कौन से दिलदार के गुन गाते हो ये तो देखो कि तुम्हें लूट लिया है उसने इक तबस्सुम पे खरीदार के गुन गाते हो.

ये ठीक है कि बहुत वहशतें भी ठीक नहीं मगर हमारी जरा आदतें भी ठीक नहीं अगर मिलो तो खुले दिल के साथ हमसे मिलो कि रस्मी रस्मी सी ये चाहतें भी ठीक नहीं.

घर की दहलीज से बाजार में मत आ जाना तुम किसी चश्मे खरीदार में मत आ जाना खाक उड़ाना इन्हीं गलियों में भला लगता है चलते फिरते किसी दरबार में मत आ जाना.

धड़कन धड़कन यादों की बारात अकेला कमरा, मैं और मेरे जख्मी एहसासात अकेला कमरा आखिरी शब के चांद से करना बालकनी में बातें, उसके शहर में होटल की ये रात अकेला कमरा.

बहुत सजाए थे आंखों में ख्वाब मैंने भी सहे हैं उसके लिए ये अजाब मैंने भी खिजां का वार बहुत कारगर था दिल पे मगर बहुत बचा के रखा ये गुलाब मैंने भी.

ढूंढ़ते क्या हो इन आंखों में कहानी मेरी खुद में गुम रहना तो आदत है पुरानी मेरी भीड़ में भी तुम्हें मिल जाऊंगा आसानी से खोया खोया हुआ रहना है निशानी मेरी.

ये बरसों का ताल्लुक तोड़ देना चाहते हैं हम अब अपने आपको भी छोड़ देना चाहते हैं हम किसी दहलीज पर आंखों के ये रौशन दिए रखकर जमीरे सुबह को झिंझोड़ देना चाहते हैं हम.