चले तो कट ही जाएगा सफर आहिस्ता आहिस्ता... मुस्तफा जैदी के चुनिंदा शेर

10 Feb 2024

By अतुल कुशवाह

मुस्तफा जैदी का मूल नाम सय्यद मुस्तफा हुसैन जैदी था. उनका जन्म 10 अक्टूबर 1929 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था. उन्हें तेग इलाहाबादी के नाम से भी जाना गया. विभाजन के बाद पाकिस्तान चले गए, वहां बड़े अफसर रहे.

शायर मुस्तफा जैदी

Photo: social media/pexels

वो अहद अहद ही क्या है जिसे निभाओ भी हमारे वादा ए उल्फत को भूल जाओ भी भला कहां के हम ऐसे गुमान वाले हैं हजार बार हम आएं हमें बुलाओ भी.

कभी झिड़की से कभी प्यार से समझाते रहे हम गई रात पे दिल को लिए बहलाते रहे हमने तो लुट के मोहब्बत की रिवायत रख ली उनसे तो पूछिए वो किसलिए पछताते रहे.

यूं तो वो हर किसी से मिलती है हमसे अपनी खुशी से मिलती है सेज महकी बदन से शरमा कर ये अदा भी उसी से मिलती है.

तेरे चेहरे की तरह और मेरे सीने की तरह मेरा हर शेर दमकता है नगीने की तरह फूल जागे हैं कहीं तेरे बदन की मानिंद ओस महकी है कहीं तेरे पसीने की तरह.

हर इक ने कहा क्यों तुझे आराम न आया सुनते रहे हम लब पे तेरा नाम न आया दीवाने को तकती हैं तेरे शहर की गलियां निकला तो इधर लौट के बदनाम न आया.

चले तो कट ही जाएगा सफर आहिस्ता आहिस्ता, हम उसके पास जाते हैं मगर आहिस्ता आहिस्ता अभी तारों से खेलो चांद की किरनों से इठलाओ, मिलेगी उसके चेहरे की सहर आहिस्ता आहिस्ता.

किसी को हाल बताना जरूर ही क्या था उस अंजुमन से हम अपने कुसूरवार आए निगाहे नाज मेरे दिल के घाव पर मत जा खुदा करे कि तुझे अपना कारोबार आए.

जब हवा शब को बदलती हुई पहलू आई मुद्दतों अपने बदन से तिरी खुशबू आई मेरे नग्मात की तकदीर न पहुंचे तुझ तक मेरी फरियाद की किस्मत कि तुझे छू आई.