गोपालदास नीरज का मूल नाम गोपालदास सक्सेना है. उनका जन्म 4 जनवरी 1925 को उत्तर प्रदेश के इटावा में हुआ था. नीरज कवि सम्मेलनों में सुबह तक अपनी कविताओं का सुर बिखेरते थे.
दोस्तों नाव को अब खूब संभाले रखियो हमने नजदीक ही इक खास भंवर देखी है उसको क्या खाक शराबों में मजा आएगा जिसने इक बार भी वो शोख नजर देखी है.
एक इस आस पे अब तक है मेरी बंद जबां कल को शायद मेरी आवाज वहां तक पहुंचे चांद को छू के चले आए हैं विज्ञान के पंख देखना ये है कि इंसान कहां तक पहुंचे.
गगन बजाने लगा जल तरंग फिर यारो कि भीगे हम भी जरा संग संग फिर यारो घुमड़ घुमड़ के जो बादल घिरा अटारी पर विहंग बन के उड़ी इक उमंग फिर यारो.
खुशबू सी आ रही है इधर जाफरान की खिड़की खुली है फिर कोई उनके मकान की हारे हुए परिंद जरा उड़ के देख तू आ जाएगी जमीन पे छत आसमान की.
जब भी इस शहर में कमरे से मैं बाहर निकला मेरे स्वागत को हर इक जेब से खंजर निकला मेरे होंठों पे दुआ उसकी जबां पे गाली जिसके अंदर जो छिपा था वही बाहर निकला.
तमाम उम्र मैं इक अजनबी के घर में रहा सफर न करते हुए भी किसी सफर में रहा वो जिस्म ही था जो भटका किया जमाने में हृदय तो मेरा हमेशा तिरी डगर में रहा.
अब के सावन में शरारत ये मेरे साथ हुई मेरा घर छोड़ के कुल शहर में बरसात हुई आप मत पूछिए क्या हमपे सफर में गुजरी था लुटेरों का जहां गांव वहीं रात हुई.
अंधियारा जिससे शरमाये उजियारा जिसको ललचाये ऐसा दे दो दर्द मुझे तुम मेरा गीत दिया बन जाये.