तहजीब हाफी नई नस्ल के फेमस शायर हैं. शायरी में उनका नया अंदाज युवाओं को खूब भाता है. तहजीब हाफी 5 दिसंबर 1989 को पाकिस्तान के रीतड़ा तहसील तौंसा शरीफ में जन्मे हैं.
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बिछड़कर उसका दिल लग भी गया तो क्या लगेगा वो थक जाएगा और मेरे गले से आ लगेगा.
मैं मुश्किल में तुम्हारे काम आऊं या न आऊं मुझे आवाज दे लेना तुम्हें अच्छा लगेगा.
इक हवेली हूं उसका दर भी हूं खुद ही आंगन खुद ही शजर भी हूं अपनी मस्ती में बहता दरिया हूं मैं किनारा भी हूं भंवर भी हूं.
तेरा चुप रहना मेरे जेहन में क्या बैठ गया इतनी आवाजें तुझे दीं कि गला बैठ गया यूं नहीं है कि फकत मैं ही उसे चाहता हूं जो भी उस पेड़ की छांव में गया बैठ गया.
अजीब ख्वाब था उसके बदन में काई थी वो इक परी जो मुझे सब्ज करने आई थी वो इक चराग कदा जिसमें कुछ नहीं था मेरा जो जल रही थी वो कंदील भी पराई थी.
वैसे मैंने दुनिया में क्या देखा है तुम कहते हो तो फिर अच्छा देखा है इश्क में बंदा मर भी सकता है मैंने दिल के दस्तावेज में लिखा देखा है.
न नींद और न ख्वाबों से आंख भरनी है कि उससे हमने तुझे देखने की करनी है तमाम नाखुदा साहिल से दूर हो जाएं समंदरों से अकेले में बात करनी है.
इसलिए रौशनी में ठंडक है कुछ चरागों को नम किया गया है मेरी नकलें उतारने लगा है आईने का बताओ क्या किया जाए.