हर रसभरी घटा को बरस जाना चाहिए... निदा फाजली के चुनिंदा शेर

6 Jan 2023

By अतुल कुशवाह

निदा फाजली का मूल नाम मुकतदा हसन फाजली था. उनका जन्म 12 अक्टूबर 1938 को दिल्ली में हुआ था. उनमें सादगी, कलंदराना शान और बोली में अलग तरह की मिठास रही.

शायर व गीतकार निदा फाजली

Photo: Facebook/pexels

वो खुश लिबास भी खुश दिल भी खुश अदा भी है मगर वो एक है क्यों उससे ये गिला भी है हमेशा मंदिर ओ मस्जिद में वो नहीं रहता सुना है बच्चों में छुपकर वो खेलता भी है.

दरिया हो या पहाड़ हो टकराना चाहिए जब तक न सांस टूटे जिए जाना चाहिए झुकती हुई नजर हो कि सिमटा हुआ बदन हर रसभरी घटा को बरस जाना चाहिए.

घर से निकले तो हो सोचा भी किधर जाओगे हर तरफ तेज हवाएं हैं बिखर जाओगे हर नए शहर में कुछ रातें कड़ी होती हैं छत से दीवारें जुदा होंगी तो डर जाओगे.

बेनाम सा ये दर्द ठहर क्यों नहीं जाता जो बीत गया है वो गुजर क्यों नहीं जाता सब कुछ तो है क्या ढूंढ़ती रहती हैं निगाहें क्या बात है मैं वक्त पे घर क्यों नहीं जाता.

उनसे नजरें क्या मिलीं रोशन फजाएं हो गईं आज जाना प्यार की जादूगरी क्या चीज है हम लबों से कह न पाए उन से हाले दिल कभी और वो समझे नहीं ये खामोशी क्या चीज है.

उसको खो देने का एहसास तो कम बाकी है जो हुआ वो न हुआ होता ये गम बाकी है अब न वो छत है न वो ज़ीना न अंगूर की बेल सिर्फ इक उसको भुलाने की कसम बाकी है.

जो हो इक बार वो हर बार हो ऐसा नहीं होता हमेशा एक ही से प्यार हो ऐसा नहीं होता हर इक कश्ती का अपना तजुर्बा होता है दरिया में सफर में रोज ही मंझधार हो ऐसा नहीं होता.

सफर को जब भी किसी दास्तान में रखना कदम यकीन में मंजिल गुमान में रखना वो एक ख्वाब जो चेहरा कभी नहीं बनता बना के चांद उसे आसमान में रखना.