जैसलमेर से 6 किलोमीटर दूर बड़ा बाग नाम की खूबसूरत जगह है. इसे छतरियों वाली जगह के नाम से भी जाना जाता है.
यहीं पर जैसलमेर के राजपरिवार का खानदानी श्मशान घाट है. कहा जाता है कि जब भी यहां किसी के घर कोई खास उत्सव होता है तो पहले श्मशान घाट जाकर पूजा की जाती है.
वहां के लोगों का कहना है कि पूर्णिमा के दिन शादी ब्याह के बाद पहली पूजा उसी श्मशान में की जाती है. यानि सुहागरात से पहले दूल्हा-दुल्हन इस श्मशान घाट में आकर पूजा करते हैं.
सदियों से यह परंपरा चली आ रही है. यहां कोई किसी को इस काम के लिए मजबूर नहीं करता. लेकिन फिर भी लोग सुहागरात से पहले यहां आकर पूजा जरूर करते हैं.
एक स्थानीय बुजुर्ग के मुताबिक, कई बार रात के वक्त श्मशान की छतरियों से हुक्का पीने की आवाजें आती हैं और तंबाकू की महक भी आती है.
इलाके के लोग बताते हैं कि शाम ढलने के बाद यानि रात को यहां हंसने की आवाजें और घुंघरुओं की छन-छन की आवाजें भी आती हैं.
कभी-कभी ऐसा भी हुआ है कि गुजरे दौर की रानियां या राजकुमारियां भी यहां लोगों को नजर आ चुकी हैं.
दिन के वक्त वहां कोई भी आ जा सकता है, लेकिन शाम ढलते ही कोई भी वहां नहीं जाता.
ऐसा नहीं है कि रात के ही समय यहां से ऐसी आवाजें सुनाई देती हैं. कई पर्यटकों ने बताया कि शाम होते ही वहां रुकने में एक डर सा महसूस होता है.
बता दें, यहां 103 राजा रानियों की छतरियां बनी हुई हैं जिसके नीचे उनकी समाधि भी बनी हुई है. यहीं पर खेत्रपाल जी का मंदिर भी है जहां जिसे लोग लोक देवता का दर्जा देते हैं.
कहते हैं कि खेत्रपाल जी इस जगह की सात योगनियों के भाई थे और राजपरिवार के सभी दिवंगत सदस्य हर रात इसी मंदिर में आराधना करने आते हैं.