तो फिर सर क्यों झुकाया जा रहा है... दिल छू लेंगे ये चुनिंदा शेर

1 Mar 2024

By अतुल कुशवाह

भला ये कौन है मेरे ही अंदर मुझसे रंजिश में वो मुझको ही गंवा बैठा न जाने किसकी ख्वाहिश में समंदर एक ठहरा सा अभी तक है तेरे अंदर नदी बनकर मेरा बहना तुझे मिलने की कोशिश में. (दर्शिका वसानी)

Photo: social media/ pexels

कागज पे तेरा नक्श उतारा नहीं गया मुझ से कोई खयाल संवारा नहीं गया मिल के लगा है आज जमाने ठहर गए तुझसे बिछड़ के वक्त गुजारा नहीं गया. (ताहिरा जबीन तारा)

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जो कुछ मुझ से कमाया जा रहा है महज घर का किराया जा रहा है वो पत्थर से जियादा कुछ नहीं है तो फिर सर क्यों झुकाया जा रहा है. (गायत्री मेहता)

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मैं अगर शाम की हवा होती रोज ही चांदनी के घर जाती तुम अगर हमसफर नहीं होते मेरी हिम्मत कहीं बिखर जाती. (खुशबू सक्सेना)

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जर्द चेहरा है मेरा जर्द भी ऐसा वैसा हिज्र का दर्द है और दर्द भी ऐसा वैसा ऐसी ठंडक कि जमी बर्फ हर इक ख्वाहिश पर सर्द लहजा था कोई सर्द भी ऐसा वैसा. (कोमल जोया)

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उसे कहना मोहब्बत दिल के ताले तोड़ देती है उसे कहना मोहब्बत दो दिलों को जोड़ देती है उसे कहना मोहब्बत नाम है रूहों के मिलने का उसे कहना मोहब्बत नाम है जख्मों के सिलने का. (इरुम जेहरा)

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हम जरा सी बात पर जो रो दिये कितने आंसू बेसबब ही खो दिये बोने वालों को नहीं एहसास तक जाने कितने गम दिलों में बो दिये. (ज्योति आजाद)

तुम्हें मुझ से मोहब्बत हो और इस दर्जा मोहब्बत हो कि मेरे बिन तुम्हारी जिंदगानी दर्द हो जाए जरा जो रो पड़ूं मैं तो तुम्हारे कहकहों का रंग धुल कर जर्द हो जाए तुम्हें मुझसे मोहब्बत हो और इस हद तक मोहब्बत हो कि मेरे नाम की खुशबू. हो. (कायनात)

एक किरदार था कहानी में खत्म होने में देर क्या लगती इश्क था तो खयाल रक्खा भी जख्म देने में देर क्या लगती. (अंजलि सिंह)