ऐसे मौसम कई आते हैं गुजर जाते हैं... अजरा नकवी के चुनिंदा शेर

31 Jan 2024

By अतुल कुशवाह

शायरा अजरा नकवी का जन्म 22 फरवरी 1952 को दिल्ली में हुआ. वे एक प्रसिद्ध कवयित्री हैं. उन्होंने कहानियां भी लिखीं. अजरा नकवी ने समकालीन सऊदी लिटरेचर का ट्रांसलेशन भी किया है.

शायरा अजरा नवी

Photo: Social Media/Pexels

किसकी परछाई मेरे साथ सफर करती है कौन है ये जो मेरी उम्र बसर करती है कोई आवाज कहीं ढूंढ़ती फिरती है मुझे इंतजार अरसे से इक राहगुजर करती है.

दिल को हर सुरमई रुत में यही समझाते हैं ऐसे मौसम कई आते हैं गुजर जाते हैं हद से बढ़ जाती है जब तल्खी ए इमरोज तो फिर हम किसी और जमाने में निकल जाते हैं.

किसी एहसास में पहली सी अब शिद्दत नहीं होती कि अब तो दिल के सन्नाटे से भी वहशत नहीं होती जमानेभर के गम अपना लिए हैं खुदफरेबी में खुद अपने गम से मिलने की हमें फुर्सत नहीं होती.

एयरपोर्ट स्टेशन सड़कों पर हैं कितने सारे लोग जाने कौन से सुख की खातिर फिरते मारे मारे लोग शाम गए ये मंजर हम ने मुल्कों मुल्कों देखा है घर लौटें बोझल कदमों से बुझे हुए अंगारे लोग.

दास्ताने जिंदगी लिखते मगर रहने दिया उसके हर किरदार को बस मोतबर रहने दिया शोर करती भागती दुनिया में शामिल भी रहे एक सुर मद्धम सा दिल के साज पर रहने दिया.

रातभर नींद में चलते हैं भटकते हैं खयाल सुबह होती है तो थक हार के घर आते हैं छोड़िए जो भी हुआ ठीक हुआ बीत गया आइए राख से कुछ ख्वाब उठा लाते हैं.

हर रात सितारों का सफर मेरे लिए है हर रोज नई ताजा सहर मेरे लिए है इक शहरे तिलिस्मात मुझे ढूंढ रहा है बेचैन कोई राहगुजर मेरे लिए है.

रात गए यादों के जंगल में दीवाली होती है दीप सजाए आ जाते हैं भूले बिसरे प्यारे लोग बचपन कितना प्यारा था जब दिल को यक़ीं आ जाता था मरते हैं तो बन जाते हैं आसमान के तारे लोग.