मेरे सीने में सब जख्मों के टांके टूट जाते हैं... कलंदर बख्श के चुनिंदा शेर

18 Feb 2024

By अतुल कुशवाह

जुरअत कलंदर बख्श का मूल नाम याह्या अमान था. उनका जन्म सन 1748 में उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले में हुआ था. उनकी शायरी में महबूब के साथ गुफ्तगू की गई है.

शायर जुरअत कलंदर बख्श

Photo: pexels

छेड़ने हमको यार आज आया बारे कुछ चहल पर मिजाज आया की दवा दर्दे दिल की बहुतेरी रास कोई न पर इलाज आया.

तसव्वुर बांधते हैं उसका जब वहशत के मारे हम, तो फिर करते हैं आप ही आप क्या क्या कुछ इशारे हम न मानी दिल ने अपनी और न हम ने बात नासेह की, हमें कह कह के हारा वो उसे कह के हारे हम. (नासेह- उपदेश देने वाला)

हुस्न ऐ जान नहीं रहने का फिर ये एहसान नहीं रहने का गुल को क्या रोती है तू ऐ बुलबुल ये गुलिस्तान नहीं रहने का.

रात क्या क्या मुझे मलाल न था ख्वाब का तो कहीं खयाल न था आज क्या जाने क्या हुआ हमको कल भी ऐसा तो जी निढाल न था.

कौन देखेगा भला इसमें है रुस्वाई क्या ख्वाब में आने की भी तुम ने कसम खाई क्या वाह मैं और न आने को कहूंगा तौबा मैं तो हैरां हूं ये बात आप ने फरमाई क्या.

अब इश्क तमाशा मुझे दिखलाए है कुछ और, कहता हूं कुछ और मुंह से निकल जाए है कुछ और नासेह की हिमाकत तो जरा देखियो यारो, समझा हूं मैं कुछ और मुझे समझाए है कुछ और.

बैठे तो पास हैं पर आंख उठा सकते नहीं जी लगा है पर अभी हाथ लगा सकते नहीं रीझते उनकी अदाओं पे हैं क्या क्या लेकिन मारे अंदेशे के गर्दन भी हिला सकते नहीं.

इलाही क्या इलाका है वो जब लेता है अंगड़ाई मेरे सीने में सब जख्मों के टांके टूट जाते हैं. --------- उस शख्स ने कल हाथों ही हाथों में फलक पर, सौ बार चढ़ाया मुझे सौ बार उतारा.