16 Feb 2024
By अतुल कुशवाह
कलीम आजिज का मूल नाम कलीम अहमद था. उनका जन्म 11 अक्टूबर 1926 को बिहार के पटना में हुआ था. उन्होंने कम उम्र में शेर कहने शुरू कर दिए थे. उर्दू शायरी में उनका महत्वपूर्ण योगदान है.
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नजर को आइना दिल को तेरा शाना बना देंगे तुझे हम क्या से क्या ऐ ज़ुल्फे जानाना बना देंगे न इतना छेड़कर ऐ वक्त दीवाना बना हम को हुए दीवाने हम तो सब को दीवाना बना देंगे.
हमको तो खैर पहुंचना था जहां तक पहुंचे जो हमें रोक रहे थे वो कहां तक पहुंचे मुझको रहने दो मेरे दर्द की लज्जत में खमोश ये वो अफसाना नहीं है जो जबां तक पहुंचे.
बड़ी तलब थी बड़ा इंतजार देखो तो बहार लाई है कैसी बहार देखो तो ये क्या हुआ कि सलामत नहीं कोई दामन चमन में फूल खिले हैं कि खार देखो तो.
धड़कता जाता है दिल मुस्कुराने वालों का उठा नहीं है अभी एतबार नालों का लिपट लिपट के गले मिल रहे थे खंजर से बड़े गजब का कलेजा था मरने वालों का.
सीने के जख्म पांव के छाले कहां गए ऐ हुस्न तेरे चाहने वाले कहां गए उठते हुओं को सब ने सहारा दिया कलीम गिरते हुए गरीब संभाले कहां गए.
न जाने रूठ के बैठा है दिल का चैन कहां मिले तो उसको हमारा कोई सलाम कहे कहूं जो बरहमन ओ शेख से हकीकते इश्क खुदा खुदा ये पुकारे वो राम राम कहे.
ये गम किसने दिया है पूछ मत ऐ हमनशीं हमसे जमाना ले रहा है नाम उसका हम नहीं लेंगे मोहब्बत करने वाले भी अजब खुद्दार होते हैं जिगर पर जख्म लेंगे जख्म पर मरहम नहीं लेंगे.
ये समंदर है किनारे ही किनारे जाओ इश्क हर शख्स के बस का नहीं प्यारे जाओ दिल की बाजी लगे फिर जान की बाजी लग जाए इश्क में हार के बैठो नहीं हारे जाओ.