पेड़ों के बदले देने पड़ें सिर तो भी परवाह नहीं... 'चिपको आंदोलन' की कहानी
By: aajtak.in
भारतीय वन सेवा के अधिकारी प्रवीण कासवान ने ट्विटर पर 'चिपको आंदोलन' का पोस्ट शेयर किया है.
उन्होंने ट्वीट किया कि चिपको आंदोलन पहली बार 293 साल पहले राजस्थान के बिश्नोई समुदाय द्वारा शुरू किया गया था.
ऐसा कहा जाता है कि 1730 में जोधपुर के राजा ने खेजड़ी के पेड़ों को गिराने के लिए 83 गांवों में सैनिक भेजे थे.
इस दौरान 365 लोगों ने अपने प्राणों का बलिदान देकर पेड़ों को बचाया था. उनका कहना था- पेड़ों के बदले सिर देने पड़ें तो भी परवाह नहीं.
फिर इस आंदोलन की दोबारा शुरुआत 1973 को उत्तराखंड के चमोली जिले के रैणी गांव में शुरू हुई थी.
लगातार पेड़ों के अवैध कटान से आहत होकर गौरा देवी के नेतृत्व में 27 महिलाओं ने आंदोलन तेज कर दिया.
उन्होंने पेड़ों को घेर लिया और पूरी रात पेड़ों से चिपकी रहीं. अगले दिन आसपास के गांवों में भी पेड़ों को बचाने के लिए लोग पेड़ों से चिपकने लगे.
नतीजा ये हुआ कि कुछ समय बाद पेड़ काटने वालों को अपने कदम पीछे खींचने पड़े. फिर 26 मार्च 1974 को यह आंदोलन खत्म हुआ था.
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