8 Feb 2025
By अतुल कुशवाह
शायरी का हर लफ्ज, हर मिसरा आपके जज्बात को बयां कर सकता है, बस इसे दिल से कहिए कि इश्क को सिर्फ महसूस ही नहीं, बयां भी किया जाता है.
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एक-एक हर्फ का अंदाज बदल रखा है आज से हमने तेरा नाम गजल रखा है मैंने शाहों की मुहब्बत का भरम तोड़ दिया मेरे कमरे में भी एक ताजमहल रखा है. (राहत इंदौरी)
क्यों न ऐ शख्स तुझे हाथ लगाकर देखूं तू मेरे वहम से बढ़कर भी तो हो सकता है ये जो है फूल हथेली पे इसे फूल न जान मेरा दिल जिस्म से बाहर भी तो हो सकता है. (अब्बास ताबिश)
मेरे तन के जख्म न गिन अभी मेरी आंख में अभी नूर है मेरे बाजुओं पे निगाह कर जो गुरूर था वो गुरूर है. (अहमद फराज)
आंख फिर वक्त पर नहीं खुलती अपनी बांहों में मत सुलाया कर धूप से जल रहा है जिस्म मेरा तू अगर पेड़ है तो साया कर. (अजहर इकबाल)
बहुत मजबूर होकर मैं तेरी आंखों से निकला, खुशी से कौन अपने मुल्क से बाहर रहा है, गले मिलना न मिलना तो तेरी मर्जी है लेकिन, तेरे चेहरे से लगता है तेरा दिल कर रहा है. (तहजीब हाफी)
चांद की पिघली हुई चांदी में आओ कुछ रंगे सुखन घोलेंगे तुम नहीं बोलती हो मत बोले हम भी अब तुमसे नहीं बोलेंगे. (जॉन एलिया)
एक दिन कह लीजिए जो कुछ है दिल में आप के एक दिन सुन लीजिए जो कुछ हमारे दिल में है. (जोश मलीहाबादी)
कोई मिला ही नहीं जिससे हाल-ए-दिल कहते मिला तो रह गए लफ्जों के इंतिखाब में हम. (अलीना इतरत)