मशहूर गीतकार जावेद अख्तर के पिता जां निसार अख्तर का मूल नाम सय्यद जां निसार हुसैन रिजवी था. उनका जन्म 8 फरवरी 1914 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में हुआ था.
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और क्या इससे ज्यादा कोई नरमी बरतूं दिल के जख्मों को छुआ है तेरे गालों की तरह जिंदगी जिसको तेरा प्यार मिला वो जाने हम तो नाकाम रहे चाहने वालों की तरह.
कम नहीं नशे में जाड़े की गुलाबी रातें और अगर तेरी जवानी भी मिला दी जाए हमसे पूछो कि गजल क्या है गजल का फन क्या चंद लफ्जों में कोई आग छुपा दी जाए.
इश्क रहजन न सही इश्क के हाथों फिर भी हमने लुटती हुई देखी हैं बरातें अक्सर उनसे पूछो कभी चेहरे भी पढ़े हैं तुमने जो किताबों की किया करते हैं बातें अक्सर.
अशआर मेरे यूं तो जमाने के लिए हैं कुछ शेर फकत उनको सुनाने के लिए हैं सोचो तो बड़ी चीज है तहजीब बदन की वर्ना ये फकत आग बुझाने के लिए हैं.
आहट सी कोई आए तो लगता है कि तुम हो साया कोई लहराए तो लगता है कि तुम हो जब शाख कोई हाथ लगाते ही चमन में शरमाए लचक जाए तो लगता है कि तुम हो.
जिंदगी तुझको भुलाया है बहुत दिन हमने वक्त ख्वाबों में गंवाया है बहुत दिन हमने तुम भी इस दिल को दुखा लो तो कोई बात नहीं अपना दिल आप दुखाया है बहुत दिन हमने.
जरा सी बात पे हर रस्म तोड़ आया था दिले तबाह ने भी क्या मिजाज पाया था पता नहीं कि मेरे बाद उनपे क्या गुजरी मैं चंद ख्वाब जमाने में छोड़ आया था.
तुमपे क्या बीत गई कुछ तो बताओ यारो मैं कोई गैर नहीं हूं कि छुपाओ यारो बोझ दुनिया का उठाऊंगा अकेला कब तक हो सके तुमसे तो कुछ हाथ बटाओ यारो.