अभी जमीर में थोड़ी सी जान बाकी है... जावेद अख्तर के चुनिंदा शेर

4 Nov 2023

By अतुल कुशवाह

जावेद अख्तर 5 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों के साथ पद्मश्री और पद्म भूषण  से भी सम्मानित हो चुके हैं. उनका जन्म 17 जनवरी 1945 को मध्य प्रदेश के  ग्वालियर में हुआ था.

गीतकार जावेद अख्तर

मुझे दुश्मन से भी खुद्दारी की उम्मीद रहती है किसी का भी हो सर कदमों में सर अच्छा नहीं लगता.

तुम ये कहते हो कि मैं गैर हूं फिर भी शायद निकल आए कोई पहचान जरा देख तो लो.

जीत के भी वो शर्मिंदा है हार के भी हम नाजां कम से कम वो दिल ही दिल में ये माना तो होगा.

मुझ को यकीं है सच कहती थीं जो भी अम्मी कहती थीं जब मेरे बचपन के दिन थे चांद में परियां रहती थीं.

बहाना ढूंढ़ते रहते हैं कोई रोने का हमें ये शौक है क्या आस्तीं भिगोने का अगर पलक पे है मोती तो ये नहीं काफी हुनर भी चाहिए अल्फाज में पिरोने का.

वो जमाना गुजर गया कब का था जो दीवाना मर गया कब का उसका जो हाल है वही जाने अपना तो जख्म भर गया कब का.

अभी जमीर में थोड़ी सी जान बाकी है अभी हमारा कोई इम्तिहान बाकी है वो जख्म भर गया अर्सा हुआ मगर अब तक जरा सा दर्द जरा सा निशान बाकी है.

मेरे दिल में उतर गया सूरज तीरगी में निखर गया सूरज दर्स देकर हमें उजाले का खुद अंधेरे के घर गया सूरज.